73rd Constitution Day: आजादी के बाद भारत ने लोकतंत्र की राह पकड़ी और अपना संविधान बनाया। देश का संविधान बनकर तैयार हुआ 1949 में। उसी साल इसे अंगीकार कर लिया गया है। इस बात को 73 साल हो गए हैं। 26 नवंबर, 1949 को संविधान के अनुच्छेद लागू कर इसे आत्मसात कर लिया गया था। हालांकि, बाद में 26 जनवरी, 1950 के दिन भारत को एक गणतांत्रिक देश घोषित करते हुए संविधान के सभी प्रावधान पूरी तरह से लागू कर लिए गए। वर्तमान में भारतीय संविधान में 12 अनुसूचियां और करीब 105 संशोधनों के बाद 450 से अधिक अनुच्छेद शामिल हैं। इसलिए, भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान कहलाता है। यहां हर काम संविधान में दिए गए कानूनी दिशा-निर्देशों और नियम-कायदों के तहत ही होता है। हालांकि, इन नियम-कायदों और कानून में कुछ ऐसे प्रावधान भी हैं, जिनसे देश की सियासी हवा अक्सर सुलग जाती है। आइए जानते हैं इन कानूनी प्रावधानों को जो देश की सियासत की हवा बदल देते हैं ...
यूएपीए अधिनियम (UAPA Act)
भारतीय संसद ने 1967 में गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Act-UAPA) को बनाया था। इस कानून में 2004, 2008, 2012 और 2019 में संशोधन किए गए। लेकिन 2019 में कठोर प्रावधान जोड़े गए थे, जिसके बाद से ही यह कानून राजनीतिक विवादों के केंद्र में रहा है। देश में जब भी UAPA कानून के तहत गिरफ्तारी होती है, देशभर में एक नई बहस छिड़ जाती है। 2021 की शुरुआत में किसान आंदोलन के तहत 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा और सेलेब्रिटी ट्वीट टूलकिट सामने आने के बाद इस कानून के तहत कुछ गिरफ्तारियां की गई थीं। जिन्हें लेकर देश में जमकर सियासत हुई। इसके तहत सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को किसी व्यक्ति विशेष को आतंकी, संगठन और संस्था को आतंकवादी संगठन घोषित किया जा सकता है। सरकार इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानती है, जबकि विपक्षी दल और एक्टिविस्ट संशोधित प्रावधानों के दुरुपयोग की आशंका जताते हुए विरोध करते हैं।
राजद्रोह कानून (Sedition Act)
यह कानून देश की आजादी से पहले 1860 में बनाया गया और इसे 1870 के दशक में लागू किया गया था। उस दौर में अंग्रेजी शासन के दौरान इसका इस्तेमाल क्रांतिकारियों की आवाज को दबाने के लिए किया जाता था। जबकि, अब इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इस्तेमाल करने की बात कही जाती है। आईपीसी की धारा-124ए के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को सरकार के विरोध में लिखने, बोलने, तथ्यों को प्रचारित-प्रसारित करने, विरोधी सामग्री का समर्थन करने या फिर राष्ट्रीय प्रतीक चिह्नों और भारतीय संविधान के अपमान की कोशिश करने पर तीन साल की सजा अथवा आजीवन कारावास हो सकता है। इसके तहत पिछले छह-सात सालों में दर्ज मामलों की संख्या में 28 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। इसलिए, इस पर सवाल उठते रहते हैं और राजनीति गर्मा जाती है। शीर्ष अदालत भी चिंता जता चुकी है कि भारत में देश विरोधी गतिविधियां बढ़ गई हैं या फिर इस गंभीर कानून का दुरुपयोग हो रहा है।
CAA - नागरिकता संशोधन कानून
यह कानून 2019 में बनाया गया था। इसमें तीन पड़ोसी देशों बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। इन देशों में हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और ईसाई धर्म के लोग अल्पसंख्यक हैं। इसलिए, भारत में पांच साल पूरा कर चुके ऐसे शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी। पहले नागरिकता पाने के लिए 11 साल की शर्त थी। हालांकि, इसे लेकर अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों और विपक्षी दलों ने जमकर विरोध-प्रदर्शन किए थे। विरोधियों का कहना है कि यह कानून अवैध प्रवासियों को मुस्लिम और गैर-मुस्लिम में विभाजित करता है, जो कि अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है। अनुच्छेद-14 में सभी को समानता की गारंटी दी गई है।
अनुच्छेद-370 (Article 370)
जम्मू-कश्मीर और वहां के नागरिकों को विशेष दर्जा देने के लिए नवंबर 1952 में अनुच्छेद-370 और 35ए के प्रावधान लागू किए थे। यह विशेष दर्जा सियासी कारणों से बीते 70 सालों में अक्सर चर्चा के केंद्र में रहा। 2019 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति के एक अध्यादेश के जरिये अनुच्छेद-370 के खंड-1 को छोड़कर अधिकांश प्रावधान खत्म कर दिए। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान भी अप्रासंगिक हो गया। वहां अब सुप्रीम कोर्ट के सभी फैसले और सभी भारतीय कानून समान रूप से लागू होने लगे हैं। बात चाहे वहां जमीन खरीदने की हो या नौकरी करने की, सभी देशवासी अब ऐसा कर सकते हैं। सरकार इसे देश की एकता और अखंडता से जोड़ती है तो राज्य के विपक्षी दल अक्सर इस विशेष दर्जे को दोबारा बहाल करने की मांग करते हैं।