उत्तराखंड में जिस टिहरी की बिजली से पूरा देश रोशन हो रहा है। उसका गौरवशाली इतिहास अंधेरे कमरों में कैद है। बिजली की जरूरतों के लिए पुरानी टिहरी ने जलसमाधि ली तो उसमें यहां के राजा का महल भी पानी में डूब गया। महल की ऐतिहासिक धरोहर को सुरक्षित जगह पर रख दिया गया।
उम्मीद थी कि सरकार इस ऐतिहासिक शहर की यादों को संजोने के लिए कुछ न कुछ करेगी। लोगों की मांग पर संग्रहालय को मंजूरी भी मिली लेकिन 18 साल बाद भी यह सपना अधूरा है। बंद कमरों में पुरानी विरासत कबाड़ में तब्दील हो रही है।
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टिहरी के गौरवशाली इतिहास की कहानी शुरू होती है 28 दिसंबर 1815 को। तब गढ़वाल रियासत के महाराजा सुदर्शन शाह ने टिहरी के पुराना दरबार में खोली का गणेश स्थापित कर अपनी नई राजधानी की नींव रखी थी। महाराजा सुदर्शन शाह के बाद कई राजा आए गए और मानवेंद्र शाह के कार्यकाल के दौरान 1949 में टिहरी रियासत का भारत संघ में विलय हो गया था।
इस बीच वहां स्कूल, बदरीनाथ मंदिर की प्रतिकृति एवं गंगा मंदिर सहित कई मंदिर, ऐतिहासिक घंटाघर स्थापित किए गए। धीरे-धीरे शहर बड़ा व्यापारिक केंद्र बन गया। इस बीच 1972 के दौरान वहां बांध बनाने की सुगबुगाहट शुरू होने के साथ शहर में मायूसी छा गई। 29 अक्तूबर 2005 को 190 साल पुराने टिहरी को देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए जलसमाधि दे दी गई। टिहरी के डूबने के बाद राजशाही से जुड़ी धरोहरों के संरक्षण के लिए संग्रहालय और शहर की प्रतिकृति बनाने की मांग उठती रही है।
उम्मीद थी कि सरकार इस ऐतिहासिक शहर की यादों को संजोने के लिए कुछ न कुछ करेगी। लोगों की मांग पर संग्रहालय को मंजूरी भी मिली लेकिन 18 साल बाद भी यह सपना अधूरा है। बंद कमरों में पुरानी विरासत कबाड़ में तब्दील हो रही है।
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इस बीच वहां स्कूल, बदरीनाथ मंदिर की प्रतिकृति एवं गंगा मंदिर सहित कई मंदिर, ऐतिहासिक घंटाघर स्थापित किए गए। धीरे-धीरे शहर बड़ा व्यापारिक केंद्र बन गया। इस बीच 1972 के दौरान वहां बांध बनाने की सुगबुगाहट शुरू होने के साथ शहर में मायूसी छा गई। 29 अक्तूबर 2005 को 190 साल पुराने टिहरी को देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए जलसमाधि दे दी गई। टिहरी के डूबने के बाद राजशाही से जुड़ी धरोहरों के संरक्षण के लिए संग्रहालय और शहर की प्रतिकृति बनाने की मांग उठती रही है।