47 साल पहले गौरा देवी ने रैणी गांव के जंगल को बचाने के लिए चिपको आंदोलन चलाया था। तब इस अनोखे आंदोलन से यह गांव विश्व पटल पर आ गया था। आज भी इस आंदोलन की मिसाल दी जाती है, लेकिन अब इसी रैणी गांव के लोग यहां नहीं रहना चाहते। वह सरकार से पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। खुद गौरा देवी की सहेली रही बुजुर्ग महिला भी अब गांव से पुनर्वास की मांग का समर्थन कर रही है। गौरा देवी ने जंगल बचाने के लिए आंदोलन किया था। उनका कहना था कि जंगल बचने से जल और जमीन भी खुद ही बच जाते हैं।