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Badrinath Dham: बदरीनाथ के रावल के साथ-साथ चलती हैं दो सेंगोल, पढ़ें इस परंपरा के बारे में रोचक बातें

संवाद न्यूज एजेंसी, गोपेश्वर Published by: अलका त्यागी Updated Tue, 30 May 2023 03:09 PM IST
Two Sengol always along with Badrinath Dham Rawal interesting things about tradition Uttarakhand news in Hindi
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देश के चार धामों में सर्वश्रेष्ठ बदरीनाथ धाम में रावल (मुख्य पुजारी) के सेंगोल (पवित्र छड़ी) के साथ चलने की प्राचीन परंपरा है। रावल को टिहरी के राजा ने यह पवित्र सेंगोल भेंट कर प्रशासनिक और न्यायिक अधिकार सौंपे थे।

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इतिहासकार बतातें हैं कि वर्ष 1853 में ब्रिटिश गढ़वाल के दौरान टिहरी राजा ने बदरीनाथ के रावल को बदरीनाथ की पूजा पद्धति के साथ ही अन्य संपूर्ण व्यवस्था सौंप दी थी। तब राजा ने रावल को सेंगोल भेंट किया था। बदरीनाथ धाम में रावल के साथ दो सेंगोल चलते हैं।
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एक सेंगोल मां भगवती का है और दूसरा टिहरी राजा का दिया हुआ है। माता मूर्ति मेले के साथ ही नंदा अष्टमी के दिन रावल के बदरीनाथ धाम से बाहर जाने पर उनके साथ दो सेंगोल चलते हैं।
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बदरीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने बताया कि बदरीनाथ धाम में रावल के नित्य पूजा में जाने के समय उनके साथ सेंगोल लेकर बीकेटीसी के कर्मचारी मंदिर तक जाते हैं।
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ब्रिटिश काल में टिहरी राजा ने बदरीनाथ के रावल को छड़ी भेंट कर बदरीनाथ में प्रशासनिक और न्यायिक अधिकार सौंप दिया था। इसे राजदंड भी कहते हैं। इसके अलावा चारों पीठों के शंकराचार्यों के साथ भी सेंगोल चलता है।
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वहीं, केदारनाथ के वरिष्ठ तीर्थपुरोहित श्रीनिवास पोस्ती ने बताया कि सेंगोल भगवान विष्णु व भगवान शंकर का प्रतीक है। सेंगोल के सबसे ऊपरी हिस्से पर नंदी को स्थापित किया गया है। साथ ही इसके आगे के हिस्से का आकार शंखाकार है, जो प्राचीन भारतीय धर्म संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। 
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