धरती पर होने वाला कुंभ स्नान पुराणों के सृजन से भी प्राचीन है। मंथन और अमृत कलश का घटनाकाल पुराना है। पुराणों का लेखन बाद में हुआ। तभी सभी 18 पुराणों में कुंभ महिमा का गान है। सृष्टि के सृजनकर्ता विष्णु की आराधना में रचित विष्णु पुराण तो कुंभ की महानता और पुण्य से भरा पड़ा है। वेद सबसे प्राचीन हैं। सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा मुख से उनका गान हुआ है। अमृत कुंभ का वर्णन ऋग्वेद में भी है। वैदिक सोम से भरे अमृत कलश से मानवमात्र के कल्याण की कामना की गई है। विष्णु पुराण के एक श्लोक के अनुसार एक सौ वाजपेय यज्ञ, एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा पृथ्वी की एक लाख परिक्रमाओं के बराबर कुंभ का एक स्नान है। सौ माघ स्नान, एक हजार कार्तिक स्नान और नर्मदा में एक करोड़ वैशाख स्नान के बराबर पुण्य कुंभ महापर्व के एक स्नान से मिल जाता है। विष्णुयाग में लिखा है कि जो लोग हरिद्वार कुंभ नगर में निवास कर स्नान करते हैं, वे संसार बंधन से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होते हैं।
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