देवताओं के गुरू बृहस्पति 8 जनवरी को सुबह 10 बजकर 05 मिनट पर सिंह राशि में वक्री हो चुके हैं। अब गुरू इसी चाल से चार महीने चलेंगे और पुनः 9 मई की शाम 05.39 बजे से मार्गी यानी सीधी चाल चलेंगे। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार किसी भी ग्रह के वक्री होने का अर्थ है, उसका अपने ही मार्ग से पुनः वापस लौटना अथवा विपरीत दिशा में चल पड़ना। इससे वक्री हुए ग्रह से मिल रही सकारात्मक ऊर्जा का रुक जाना। गुरु को अध्यात्म ज्ञान का प्रकाशक कहते हैं। यह ब्रह्मज्ञान, शिक्षण संस्थाओं, धार्मिक कार्यों, धर्माचार्यों एवं शासन सत्ता के सलाहकारों के कारक हैं। पं जयगोविन्द शास्त्री बताते हैं कि, गुरू के वक्री होने का अर्थ है इन इन क्षेत्रों में चुनौतियां और कठिनाइयां बढेंगी।