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Astrology For Marriage: गुरु और शुक्र की शुभता के बिना नहीं मिल सकता है विवाह का सुख, जानिए कैसे

ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: श्वेता सिंह Updated Sun, 11 Jun 2023 12:28 AM IST
Astrology For Marriage the auspiciousness of Jupiter and Venus is secret of Happy Marriage life
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Astrology For Marriage: हमारी भारतीय संस्कृति में विवाह जीवन में होने वाली सिर्फ एक घटना नहीं बल्कि संस्कार के तौर पर माना जाता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मनुष्य के जन्म से लेकर उसके मरने तक जिन संस्कारों का विधान किया उनमें पाणिग्रहण संस्कार यानी के विवाह भी एक अनिवार्य संस्कार है। वैदिक ज्योतिष में हर ग्रह किसी न किसी चीज का कारक होता है। उदाहरण के लिए शनि को सेवा का कारक माना गया है उसी प्रकार मंगल को साहस का कारक माना जाता है। अगर वैवाहिक जीवन की बात की जाए तो दो ग्रहों के बिना एक सुखी वैवाहिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनमें से एक है बृहस्पति और दूसरे हैं शुक्र। वैदिक ज्योतिष में सप्तम भाव विवाह का भाव होता है यानी कि उस भाव से यह पता चलता है कि आपका जीवन साथी किस प्रकार का होगा और आपका वैवाहिक जीवन कैसे चलेगा। शुक्र और बृहस्पति दोनों ही सप्तम के कारक होते हैं। अगर किसी पुरुष की कुंडली है तो उस कुंडली में शुक्र स्त्री का कारक बनेगा और अगर किसी स्त्री की कुंडली है तो उसमें बृहस्पति पति का कारक बनेगा। 
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शुक्र और गुरु ग्रह का विवाह में महत्व 
वैदिक ज्योतिष में शुक्र व्यक्ति के यौन सुख का, भौतिक सुख सुविधाओं का, शरीर के द्वारा उससे मिलने वाले आनंद का प्रतीक होता है। वही बृहस्पति जीवन में नैतिकता, समृद्धि, संस्कार और धर्म का कारक होता है। एक सुखी वैवाहिक जीवन के लिए दोनों की उपस्थिति आवश्यक होती है। अगर दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे को इंद्रिय सुख का आनंद देते हुए धर्म में लिप्त रहे तो ऐसे पति-पत्नी आदर्श पति-पत्नी कहे जा सकते हैं।  
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सप्तम भाव में शुभ नहीं होता गुरु और शुक्र का योग 
बृहस्पति और शुक्र दोनों के बारे में यह कहा जाता है कि वह सप्तम भाव में अच्छे नहीं होते। बृहस्पति के बारे में यह कहा जाता है कि वह जिस भाव में बैठते हैं उस भाव से मिलने वाले फलों में देरी करते हैं। अगर बृहस्पति किसी व्यक्ति की कुंडली के सप्तम भाव में बैठे हैं तो वह इस चीज को दर्शाते हैं कि उस व्यक्ति का विवाह थोड़ा देरी से हो सकता है। उसी प्रकार यदि शुक्र किसी व्यक्ति के सप्तम भाव में विराजमान हैं तो ऐसा माना जाता है कि वह व्यक्ति विवाह के बाद किसी और स्त्री के साथ संबंध बनाने की कोशिश करता है। वैवाहिक जीवन से आनंद को दूर करता है। वैदिक ज्योतिष का नियम यह भी कहता है कि अगर शुक्र और बृहस्पति सप्तम भाव में विराजमान ना हो कर के अगर सप्तम भाव पर दृष्टि डालें तो सप्तम भाव के स्वामी के साथ शुभ भावों में विराजमान हो जाएं तो ऐसे व्यक्ति को अपने जीवन में असीम आनंद प्राप्त होता है।  एक धार्मिक और सदाचारी जीवन साथी उसे मिलता है।
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शुक्र ग्रह है आकर्षक व्यक्तित्व का कारक   
शुक्र आकर्षक व्यक्तित्व से भरा हुआ ग्रह है। यह सौंदर्य को, भौतिक सुख सुविधाओं को, शारीरिक सुखों को, इंद्रिय सुख को रिप्रेजेंट करता है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में खासतौर से पुरुष की कुंडली में शुक्र अच्छी स्थिति में होगा तो उसे बहुत सुंदर स्त्री प्राप्त होती है। क्योंकि शुक्र वीर्य का भी कारक होता है इसलिए शुक्र जब अच्छे भावों में राजयोग बना करके विराजमान होता है तो ऐसा व्यक्ति अपनी पत्नी को शारीरिक रूप से भी संतुष्ट कर पाता है। अगर शुक्र राहु के साथ, मंगल के साथ, सूर्य के साथ अशुभ भाव में विराजमान हो तो ऐसे व्यक्ति को यौन सुख में कमजोरी आती है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि कमजोर शुक्र के कारण व्यक्ति को नपुंसकता हो जाती है। वह संतान उत्पन्न करने में समर्थ नहीं होता। वह अपनी पत्नी को शारीरिक सुख देने में भी असमर्थ रहता है। 
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बृहस्पति हैं दांपत्य जीवन का कारक 
इसी प्रकार बृहस्पति के भी कारक को देखें तो बृहस्पति दांपत्य जीवन का कारक होने के कारण शुक्र के बाद सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है। अगर किसी स्त्री की कुंडली में बृहस्पति शुभ भावों में विराजमान होगा, बलवान होगा, राजयोग बना करके बैठा होगा तो जाहिर सी बात है कि उस स्त्री को अपने पति से असीम सुख, धन संपत्ति और आनंद प्राप्त होता है। बृहस्पति संतान का भी कारक होता है इसलिए एक स्त्री की कुंडली में यह बहुत आवश्यक है कि बृहस्पति की स्थिति शुभ हो। बृहस्पति कई बार अशुभ ग्रहों के साथ बैठकर के किसी दूसरी जाति में विवाह को भी दर्शाता है। कई स्त्रियों की कुंडलियों में देखा गया है इसलिए पूर्ण रूप से यह कहा जा सकता है कि वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए बृहस्पति और शुक्र यह दो ग्रह कुंडली में शुभ होने चाहिए।
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