रूसी अभियोजकों ने भागवद् गीता के रूसी भाषा में अनुवादित संस्करण पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाले मामले को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया है। इसके साथ ही इस संवेदनशील मामले पर पर्दा डाल दिया गया है जिसने दुनियाभर में हिंदुओं को आक्रोशित कर दिया था।
इस मसले के चलते रूस के भारत के साथ संबंधों में भी तनाव आ गया था। लीगल न्यूज एजेंसी आरएपीएसआई ने बताया कि साइबेरियाई शहर टोम्स्क में सरकारी अभियोजक इस मामले में निचली अदालत के फैसले को चुनौती नहीं देंगे। निचली अदालत ने हिंदू धार्मिक ग्रंथ के रूसी अनुवाद को ‘अतिवादी’ घोषित करने से इंकार कर दिया था।
टोम्स्क क्षेत्रीय सरकारी अभियोजक कार्यालय ने जून 2011 में इस मामले में कदम उठाया था। टोम्स्क सोसायटी फॉर कृष्णा कांशियसनेस ने दावा किया था कि अनुवादित संस्करण ‘भागवत गीता ऐज इट इज’ अतिवादी साहित्य है और यह नफरत से भरा है। पुस्तक के रूसी अनुवाद के खिलाफ दायर याचिकाओं को दो अदालतों द्वारा पहले ही खारिज किया जा चुका है।
दिसंबर में जब इस मामले संबंधी याचिका को टोम्स्क की एक अदालत ने खारिज किया था तो भारत और हिंदू समुदाय ने फैसले पर प्रसन्नता व्यक्त की थी। इस संवेदनशील मामले को हल करने के लिए भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने रूस से सहयोग मांगा था। रिपोर्ट के अनुसार भगवद् गीता का रूस में पहली बार प्रकाशन 1788 में किया गया था, उसके बाद उसके वहां कई अनुवादित संस्करणों का प्रकाशन किया गया।
रूसी अभियोजकों ने भागवद् गीता के रूसी भाषा में अनुवादित संस्करण पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाले मामले को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया है। इसके साथ ही इस संवेदनशील मामले पर पर्दा डाल दिया गया है जिसने दुनियाभर में हिंदुओं को आक्रोशित कर दिया था।
इस मसले के चलते रूस के भारत के साथ संबंधों में भी तनाव आ गया था। लीगल न्यूज एजेंसी आरएपीएसआई ने बताया कि साइबेरियाई शहर टोम्स्क में सरकारी अभियोजक इस मामले में निचली अदालत के फैसले को चुनौती नहीं देंगे। निचली अदालत ने हिंदू धार्मिक ग्रंथ के रूसी अनुवाद को ‘अतिवादी’ घोषित करने से इंकार कर दिया था।
टोम्स्क क्षेत्रीय सरकारी अभियोजक कार्यालय ने जून 2011 में इस मामले में कदम उठाया था। टोम्स्क सोसायटी फॉर कृष्णा कांशियसनेस ने दावा किया था कि अनुवादित संस्करण ‘भागवत गीता ऐज इट इज’ अतिवादी साहित्य है और यह नफरत से भरा है। पुस्तक के रूसी अनुवाद के खिलाफ दायर याचिकाओं को दो अदालतों द्वारा पहले ही खारिज किया जा चुका है।
दिसंबर में जब इस मामले संबंधी याचिका को टोम्स्क की एक अदालत ने खारिज किया था तो भारत और हिंदू समुदाय ने फैसले पर प्रसन्नता व्यक्त की थी। इस संवेदनशील मामले को हल करने के लिए भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने रूस से सहयोग मांगा था। रिपोर्ट के अनुसार भगवद् गीता का रूस में पहली बार प्रकाशन 1788 में किया गया था, उसके बाद उसके वहां कई अनुवादित संस्करणों का प्रकाशन किया गया।