आईवीएफ एक्सपर्ट इस तकनीक को प्रयोग करते समय बहुत सावधानी बरतते हैं ताकि किसी के स्वास्थ्य और खासकर सम्मान को ठेस न पहुंचे। इस दौरान डोनर की आइडेंटिटी को पूरी तरह से गुप्त रखा जाता है और रिसीवर की पहचान को लेकर भी एहतियात बरती जाती है।
डॉक्टर सिर्फ रिसीवर को डोनर की हाइट, कलर, बैकग्राउंड, एजुकेशन और मेंटल व फिजिकल हेल्थ के बारे में ही बताते हैं। यहां डोनर की पहचान गुप्त रखी जाती है। उससे यह साइन भी करवाया जाता है कि अगर बाद में पता भी चल गया, तो उस औलाद पर डोनर का कोई हक नहीं होगा।
स्पर्म डोनेट करा रही कई कंपनियां
ऐसा नहीं है कि आप स्पर्म डोनेट करने के लिए क्लीनिक तलाशें। स्पर्म के केस सुलझाने के लिए स्पर्म डोनेशन का बिजनेस करने वाली कंपनियां कॉलेज स्टूडेंट्स के साथ बाकायदा वर्कशॉप कर रही हैं। ये कंपनियां अपने स्टॉल लगाकर छात्रों को स्पर्म डोनेशन के सामाजिक पहलू के बारे में बताती हैं।
स्पर्म देने के लिए तैयार हुए छात्रों का पहले मेडिकल टेस्ट होता है। मेडिकल टेस्ट के बाद उनसे एक निश्चित अवधि का कॉन्ट्रैक्ट भरवाया जाता है। फिर उन्हें हफ्ते में दो बार कंपनी की लैब आकर स्पर्म डोनेट करना होता है। ये कंपनियां उस छात्र को आने जाने का किराया और डोनेशन की संभव कीमत अदा करती हैं।
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