भारत बंद के दिन वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के लिखे ब्लॉग से भाजपा दो फाड़ होती नजर आ रही है। एक और आडवाणी हैं तो दूसरी ओर पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी। आडवाणी के छोड़े तीरों को भाजपा का एक बड़ा खेमा हजम नहीं कर पा रहा है। माना जा रहा है कि इस ब्लॉग ने आडवाणी और गडकरी खेमे के घमासान को और तेज करने की बिसात बिछा दी है।
इससे आडवाणी एक बार फिर पार्टी में अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं। जिन्ना प्रकरण के मौके पर भी वे इसी तरह अलग-थलग पड़े थे। भाजपा में ज्यादातर नेता आडवाणी की सलाह को गलत समय पर दी गई बेमौसमी नसीहत मान रहे हैं क्योंकि एक तो आडवाणी भारत बंद में भी शामिल नहीं हुए और उल्टा उसी दिन गडकरी को निशाने पर लाकर मीडिया की सुर्खियां बटोर दीं।
इन नेताओं का मानना है कि इससे एनडीए के भारत बंद को ज्यादा सुर्खियां नहीं मिल पाईं। शाम को गडकरी ने जब भारत बंद की समीक्षा के लिए पार्टी के पदाधिकारियों की बैठक बुलाई तो आडवाणी उसमें भी शामिल नहीं हुए। सूत्रों के अनुसार गडकरी के आवास पर हुई इस बैठक में आडवाणी की टिप्पणियों पर गहरी नाराजगी जताई गई।
कई पदाधिकारियों का कहना था कि मुंबई में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कहीं बातें भारत बंद के मौके पर दोहराने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इससे भारत बंद कार्यक्रम को नुकसान हुआ है। इस बैठक में तय किया गया कि 7 जून से यूपीए सरकार की नीतियों के खिलाफ देशभर में जनजागरण अभियान शुरू किया जाएगा। यह अभियान लंबा चलेगा और कई चरणों में चलाया जाएगा।
माना जा रहा है कि मुंबई बैठक में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मिली तवज्जो के बाद आडवाणी को लगने लगा है कि अब उनकी पारी लगभग खत्म हो गई हैं। इसलिए वे इस तरह की नसीहत देने लगे हैं। खास बात यह है कि गडकरी के साथ बैठक के बाद आडवाणी से मिलने पहुंचने वालों में सुषमा स्वराज अकेली दिग्गज नेता थीं। जबकि सांसदों में अकेले बलवीर पुंज आडवाणी को मिलने पहुंचे। सुषमा को गडकरी विरोधी खेमे में गिना जाता है।