सरकार ने भले ही देशभर में फ्री रोमिंग का सपना लोगों को दिखाया हो लेकिन इसे लागू कर पाना उसके लिए इतना आसान नहीं होगा।
माना जा रहा है कि सरकार के इस प्रस्ताव का हाल मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी सेवा की तरह न हो जाए, जिसे लागू होने में सालों लग गए। नई दूरसंचार नीति के साथ फ्री रोमिंग के ऐलान पर मोबाइल कंपनियों ने सवाल खड़ा कर दिया है। साथ ही दूरसंचार विशेषज्ञ भी इस पर अमल होने पर सवालिया निशान खड़ा कर रहे हैं। वहीं खुद सरकार इसे लेकर निश्चित नहीं है कि फ्री रोमिंग का सपना आखिर कब पूरा होगा।
मोबाइल फोन कंपनियों के संगठन सीओएआई के अध्यक्ष राजन मैथ्यू ने अमर उजाला को बताया कि फ्री रोमिंग की बात कही गई है लेकिन सरकार ने देश में एक ही लाइसेंस यानी पैन इंडिया लाइसेंस को लेकर अभी भी स्थिति स्पष्ट नहीं की है। सरकार को राष्ट्रीय लाइसेंस नीति के तहत इसे स्पष्ट करना चाहिए।
मैथ्यू ने कहा कि इसे लेकर कई कानूनी मसले खड़े हो सकते हैं। राज्य सरकार भी इसके लिए तैयार होती है या नहीं। यह भी कहना मुश्किल है। सुरक्षा का मुद्दा भी इस सिलसिले में बड़ा सवाल है।
वहीं टेलीकॉम विशेषज्ञ सुधीर उपाध्याय कहते है कि इसे लागू करना कंपनियों के लिए घाटे का सौदा भी है। इसलिए भी वह इसे लागू करने में आनाकानी करेंगी। जिस तरह मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी सेवा को लागू करने में लंबा समय लगा था। वैसे ही इस मामले में भी हो सकता है।
सरकार ने भले ही देशभर में फ्री रोमिंग का सपना लोगों को दिखाया हो लेकिन इसे लागू कर पाना उसके लिए इतना आसान नहीं होगा।
माना जा रहा है कि सरकार के इस प्रस्ताव का हाल मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी सेवा की तरह न हो जाए, जिसे लागू होने में सालों लग गए। नई दूरसंचार नीति के साथ फ्री रोमिंग के ऐलान पर मोबाइल कंपनियों ने सवाल खड़ा कर दिया है। साथ ही दूरसंचार विशेषज्ञ भी इस पर अमल होने पर सवालिया निशान खड़ा कर रहे हैं। वहीं खुद सरकार इसे लेकर निश्चित नहीं है कि फ्री रोमिंग का सपना आखिर कब पूरा होगा।
मोबाइल फोन कंपनियों के संगठन सीओएआई के अध्यक्ष राजन मैथ्यू ने अमर उजाला को बताया कि फ्री रोमिंग की बात कही गई है लेकिन सरकार ने देश में एक ही लाइसेंस यानी पैन इंडिया लाइसेंस को लेकर अभी भी स्थिति स्पष्ट नहीं की है। सरकार को राष्ट्रीय लाइसेंस नीति के तहत इसे स्पष्ट करना चाहिए।
मैथ्यू ने कहा कि इसे लेकर कई कानूनी मसले खड़े हो सकते हैं। राज्य सरकार भी इसके लिए तैयार होती है या नहीं। यह भी कहना मुश्किल है। सुरक्षा का मुद्दा भी इस सिलसिले में बड़ा सवाल है।
वहीं टेलीकॉम विशेषज्ञ सुधीर उपाध्याय कहते है कि इसे लागू करना कंपनियों के लिए घाटे का सौदा भी है। इसलिए भी वह इसे लागू करने में आनाकानी करेंगी। जिस तरह मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी सेवा को लागू करने में लंबा समय लगा था। वैसे ही इस मामले में भी हो सकता है।