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'कठोर मौद्रिक नीति से सुस्त पड़ा विकास'

Market Updated Fri, 01 Jun 2012 12:00 PM IST
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वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जीडीपी की वृद्धि दर के आंकड़ों पर निराशा जताते हुए कहा कि कठोर मौद्रिक नीति और कमजोर ग्लोबल निवेश धारणा से आर्थिक विकास में नरमी आई है। वित्त मंत्री ने कहा कि कठोर मौद्रिक नीति से ब्याज लागत में बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ ही ग्लोबल निवेश धारणा के कमजोर होने से भी घरेलू निजी निवेश प्रभावित हुआ है। इसके अतिरिक्त खनन क्षेत्र में पर्यावरण नीति से उत्पन्न बाधाओं से भी घरेलू स्तर पर निवेश प्रभावित हुआ है।


कोल लिंकेज में आई तेजी
हालांकि मुखर्जी ने कहा कि इनमें से अधिकांश समस्याओं का समाधान किया जा चुका है। खनन गतिविधियों सहित विभिन्न क्षेत्रों में तेजी आने लगी है। कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं के लिए कोल लिंकेज में तेजी आई है। उन्होंने कहा कि 2012-13 में दक्षिण पश्चिम मानसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की गई है। इन सभी कारकों से आगे अर्थव्यवस्था में तेजी आने के संकेत मिल रहे हैं।


'पूंजी प्रवाह में होगा सुधार'
वित्त मंत्री ने कहा कि राजकोषीय और चालू खाता के मामले में सरकार असंतुलन को दूर करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी। इससे महंगाई दर में तेजी आने की आशंकाओं को भी नियंत्रित करने में मदद मिलेगी और पूंजी प्रवाह में सुधार होगा। 2011-12 की अंतिम तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 5.3 प्रतिशत पर सिमट गई है। इसी वित्त वर्ष में जीडीपी की दर का अनुमान पहले के 6.9 फीसदी से घटाकर 6.5 फीसदी कर दिया गया है।

वित्त मंत्री के बयान पर राय
निश्चित रूप से यह सरकार के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिग्नल है। भारत के लिए अब ‘करो या मरो’ की स्थिति आ गई है। सरकार को पेनिक बटन दबा देना चाहिए। स्पष्ट तौर पर सरकार को अब 1991 की तर्ज पर रिफॉर्म एजेंडा अपनाने की जरूरत है। यदि सरकार ने अब कोई कदम नहीं उठाया तो, भारत की क्रेडिट रेटिंग जोखिम में पड़ सकती है।
- रूपा रेगे नित्सुरे, मुख्य अर्थशास्त्री, बैंक ऑफ बड़ौदा

जीडीपी की वृद्धि दर में गिरावट के ताजा आंकड़ों ने ठोस नीतियां बनाने का व्यापक अवसर उपलब्ध कराया है। उम्मीद की जानी चाहिए की रिजर्व बैंक आगे भी अपनी मौद्रिक नीति में नरमी का रुख बनाए रखेगा। जीडीपी के मौजूदा आंकड़े के बाद बाजार को चालू वित्त वर्ष में ब्याज दरों में 0.50 से 0.75 फीसदी की कटौती देखने को मिल सकती है।
- राहुल बजोरिया, रीजनल अर्थशास्त्री, बार्कलेज

यह एक बहुत बड़ा निगेटिव सरप्राइज है। विनिर्माण सेक्टर में नकारात्मक रुझान का पहले से ही अनुमान था। विकास दर के यह आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं। रुपये में आ रही लगातार गिरावट से अभी आगे भी यह रुझान बना रहा सकता है। इस स्थिति में रिजर्व बैंक के लिए अब इन आंकड़ों की अनदेखी करना संभव नहीं होगा।
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- शुभदा राव, मुख्य अर्थशास्त्री, येस बैंक

मौजूदा हालात को देखते हुए जरूरी है कि मानसून सामान्य रहे। जीडीपी आंकड़े खराब तो रहे हैं, लेकिन चौथी तिमाही में निवेश में सुधार नजर आ रहा है। आरबीआई विकास पर फोकस कर सकता है, लेकिन महंगाई बढ़ने की स्थिति में उसके लिए दरें घटाना मुश्किल हो सकता है। हालांकि, दरों में थोड़ी कटौती की उम्मीद की जा सकती है।
- डीके जोशी, मुख्य अर्थशास्त्री, क्रिसिल

जून में आरबीआई द्वारा रेपो रेट में कटौती करना मुश्किल दिख रहा है। लेकिन, अगर जुलाई में हालात सुधरते नहीं है तो आरबीआई दरें घटा सकता है।
- आरके बंसल, कार्यकारी निदेशक, आईडीबीआई
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