उद्योग जगत ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मौजूदा आंकड़ों को निराशाजनक बताते हुए सरकार से स्थिति सुधारने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाने की अपील की है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2011-12 की अंतिम तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 5.3 प्रतिशत पर सिमट गई है। इसी वित्त वर्ष में जीडीपी की दर का अनुमान पहले के 6.9 फीसदी से घटाकर 6.5 फीसदी कर दिया गया है।
ग्लोबल अर्थव्यवस्था में अनिश्चय की स्थिति
भारतीय उद्योग एवं वाणिज्य महासंघ फिक्की के महासचिव राजीव कुमार ने कहा है कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था पर निवेशकों के घटते विश्वास का प्रतीक है। अगर इस स्थिति पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया, जो देश 1991 के जैसे संकट में फंस सकता है। अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है। ग्लोबल अर्थव्यवस्था में अनिश्चय की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में घरेलू अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए कडे़ उपाय किए जाने चाहिए।
जीडीपी घटने से रोजगार होंगे प्रभावित
उद्योग संगठन एसोचैम के अध्यक्ष राजकुमार धूत ने कहा है कि जीडीपी के आंकड़ों से स्पष्ट है कि देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट का रुख बना हुआ है। इसे रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि उद्योग के सभी क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने की जरूरत है। सरकार को देश में निवेश का वातावरण बनाना चाहिए। इसके अलावा, कर प्रावधानों में संशोधनों के प्रस्तावों की समीक्षा की भी आवश्यकता है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश से संबद्ध प्रावधानों में भी ढील देनी चाहिए। जीडीपी की वृद्धि दर घटने से रोजगार के अवसरों पर नकारात्मक असर पडे़गा।
सीआरआर कटौती से बढ़ेगी पूंजी आवक
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि जीडीपी में गिरावट आशंका के अनुरूप है। घरेलू अर्थव्यवस्था में गंभीर गिरावट हो रही है। यह उम्मीद से अधिक है। राजकोषीय घाटा और चालू खाता घाटा बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में सरकार और रिजर्व बैंक को निवेश बढ़ाने के लिए कडे़ कदम उठाने चाहिए। ब्याज दरों और सीआरआर में कटौती की जानी चाहिए। इससे बाजार में पूंजी की आवक बढ़ सकेगी। बनर्जी ने कहा कि सरकार को अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए अल्पावधि पैकेज जारी करना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकार को तालमेल के साथ कदम उठाने चाहिए, जिससे नई परियोजनाओं को जल्द से जल्द मंजूरी मिल सके।