भारत एक हजार अरब डॉलर से अधिक की बाजार पूंजीकरण वाले दुनिया के 12 शीर्ष देशों के समूह में शामिल रहने का अपना रुतबा जल्द खो सकता है। रुपये के तेल अवमूल्यन और शेयर बाजार में आ रही गिरावट ने यह संकट खड़ा कर दिया है।
रुपये के रिकॉड निचले स्तर पर पहुंचने और सेंसेक्स के 16 हजार अंक से नीचे उतरने से बीएसई का बाजार पूंजीकरण घटकर 12 जनवरी के बाद के सबसे निचले स्तर एक हजार 20 अरब डॉलर पर आ गया। इस सीमा पर रुपये की विनिमय दर और बीएसई के बाजार पूंजीकरण में 1.8 फीसदी की हल्की गिरावट भी भारत को एक हजार अरब डॉलर से अधिक के बाजार पूंजीकरण वाले देशों के समूह से बाहर धकेलने के लिए काफी होगी।
इसके पहले 22 मई को संकलित किए गए बाजार पूंजीकरण के आंकड़ों के मुताबिक एक हजार अरब डॉलर से ज्यादा की बाजार पूंजी वाले देशों में भारत, स्विट्जरलैंड और ब्राजील समेत 12 देश शामिल रहे। हालांकि तेजी से घटती बाजार पूंजी के कारण ब्राजील और स्विट्जरलैंड की स्थिति भी बहुत कुछ भारत के समान ही है।
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा जब भारत पर यह खतरा मंडरा रहा हो। 2007 में सेहतमंद बाजार पूंजीकरण वाले देशों के खेमे में शामिल होने के बाद 2008 की जनवरी में देश की कुल बाजार पूंजी 19 सौ अरब डॉलर की रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंच गई थी। लेकिन, इसके बाद ग्लोबल मंदी की मार से यह घटकर 500 अरब डॉलर तक सिमट गई। यदि रुपये और शेयर बाजार में आगे भी यही गिरावट रही, तो बाजार पूंजीकरण के मामले में देश की साख पर बट्टा लगना तय है।