पंजाब विधानसभा चुनावों को देखते हुए राज्य में सियासी पारा चढ़ गया है। एक तरफ जहां कैप्टन अमरिंदर सिंह फिर से सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस में चल रही अंदरूनी कलह को दूर करने में लगे हुए हैं। वहीं दूसरी ओर राज्य में सरकार बनाने के लिए बादल परिवार और उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम मायावती की पार्टियां करीब आ गई हैं। चुनाव को देखते हुए दोनों दलों में सीटों का भी बंटवारा हो गया है। हालांकि पंजाब बहुजन समाज पार्टी के नेताओं को शिरोमणि अकाली दल के साथ गठजोड़ नागवार गुजर रहा है। पार्टी नेताओं का कहना है कि गठबंधन में जिस तरह से सीटों का बंटवारा हुआ है, उस तरह से राज्य में बसपा को एक भी सीट हासिल नहीं होगी।
विरोध करने वाले नेताओं को दिखाया बाहर का रास्ता
दोनो दलों के बीच हुए सीट बंटवारे के फॉर्मूले के अनुसार राज्य की 117 विधानसभा सीटों में से बसपा 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और शिरोमणि अकाली दल 97 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेंगी। राज्य बीएसपी के नेता इस सीट बंटवारे से खुश नहीं हैं। नाराज नेताओं ने सीट बंटवारे को लेकर अपनी बात हाईकमान तक भी पहुंचा दी है। हाईकमान ने फैसले के विरोध में आवाज उठाने वाले सभी नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बसपा ने जून में अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रशपाल राजू को पार्टी के गठजोड़ के खिलाफ आवाज उठाने के कारण निष्कासित कर दिया था। वहीं, पार्टी की ओबीसी इकाई के अध्यक्ष सुखबीर सिंह शालीमार भी इस फैसले के विरोध में अपना इस्तीफ़ा दे चुके हैं। नाराज पार्टी कार्यकर्ता साझा फ्रंट पंजाब के बैनर तले ओबीसी और दलितों का एक नया मोर्चा तैयार करने में जुट गए हैं। वहीं, अमर उजाला ने जब इस मामले में जब बसपा की पंजाब इकाई के अध्यक्ष जसवीर सिंह गढ़ी से संपर्क की कोशिशें की, लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी।
बसपा को नहीं मिलेगी एक भी सीट
अमर उजाला से चर्चा करते हुए पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रशपाल राजू ने कहा, 26 जून की रात में प्रदेश अध्यक्ष ने हमारे विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप पर एक संदेश भेजा कि मुझे सीट बंटवारे के फॉर्मूले के खिलाफ आवाज उठाने के लिए पार्टी से निकाला जा रहा है। राज्य बसपा के अधिकांश कार्यकर्ता सीटों के इस बंटवारे के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं लेकिन बसपा नेतृत्व किसी की सुनने को तैयार ही नहीं है। बहनजी (मायावती) पार्टी के समझदार लोगों को बाहर निकाल रही हैं। फिलहाल हमें जो सीटें मिली हैं, हम उनमें से एक भी सीट नहीं जीतेंगे। आज पार्टी के भीतर नेता दुखी है, कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ रहा है। आने वाले दिनों में कई कार्यकर्ता बसपा छोड़ देंगे।
उन्होंने आगे कहा, दोआबा जिस क्षेत्र से बसपा के संस्थापक काशीराम के संबंध थे, वहां पार्टी को 23 विधानसभा सीटों में से सिर्फ आठ सीटें मिली हैं। दोआबा क्षेत्र की 12 विधानसभा सीटों पर हमारे पास हर निर्वाचन क्षेत्र में 15,000 से 25,000 तक वोट हैं। लेकिन हमारा क्षेत्र अकाली दल को दे दिया गया। अब हमारे पूरे वोट उन्हें ट्रांसफर हो जाएंगे। गठबंधन में हमें ऐसी सीटे मिली हैं, जिन पर हमारे महज 1500 वोट हैं। ऐसी स्थिति में हम क्या सीटें जीत पाएंगे। जब केंद्र सरकार ने तीन नए कृषि कानून पारित किए थे, तब अकाली भाजपा के साथ खड़े थे। आज वे इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। लोगों के मन में अकालियों की छवि बहुत खराब हो गई है।
बहनजी की पंजाब में कोई रुचि नहीं है
राज्य में सीट बंटवारे के विरोध में इस्तीफा दे चुके ओबीसी इकाई के अध्यक्ष सुखबीर सिंह शालीमार अमर उजाला को बताते हैं कि बसपा के प्रमुख नेताओं ने सीट बंटवारे के फॉर्मूले को अंतिम रूप दिए जाने से पहले वरिष्ठ नेताओं को भरोसे में नहीं लिया। आज अकाली दल को लेकर पूरे पंजाब में रोष देखा जा रहा है। ऐसे स्थिति में अकालियों को हमारा सहयोगी नहीं होना चाहिए था। आज बहनजी उत्तर प्रदेश में तो पूर्व नेताओं से बात कर रही हैं और उन्हें आमंत्रित कर रही हैं, लेकिन पंजाब में वह पार्टी से नेताओं को निकाल रही हैं। ऐसा लगता है कि उनकी पंजाब में कोई रुचि नहीं रह गई है।
उन्होंने बताया कि, आज अकालियों को हमारी सभी मजबूत सीटें दे दी गई हैं। इससे कार्यकर्ताओं में काफी नाराजगी है और जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं कर रहे हैं। पंजाब में अपने अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन के बाद बसपा 2022 के विधानसभा चुनावों में उतरने वाली है। 2017 के चुनावों में पार्टी का वोट-शेयर गिरकर 1.5 फीसदी रह गया था, जो 2012 के चुनावों में 4.29 फीसदी रहा था। यह 1992 के विधानसभा चुनाव में उसके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 9 सीटें हासिल की थीं।
अकाली का वादा दलित होगा उपमुख्यमंत्री
पंजाब में करीब 33 फीसदी दलित वोट हैं और अहम माने जा रहे दलित वोट बैंक पर अकाली दल की नजर है। अकाली दल बसपा के सहारे इस दलित वोट बैंक को हासिल कर एक बार फिर से सत्ता में आने की कोशिशों में जुटी है। अकाली दल ने दलित वोट बैंक को लुभाने को लेकर पहले ही एलान कर दिया है कि अगर प्रदेश में अकाली दल की सरकार बनती है, तो उपमुख्यमंत्री दलित वर्ग से बनाया जाएगा।
गौरतलब है कि 1996 में बसपा और अकाली दल दोनों ने संयुक्त रूप से लोकसभा चुनाव लड़ा और 13 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की थी। बहुजन समाज पार्टी पंजाब में पिछले 25 सालों से विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव लड़ती रही है लेकिन पार्टी को राज्य में कभी बड़ी जीत हासिल नहीं हुई। इसके बावजूद, फिर भी वह दलित वोट बैंक को प्रभावित करती है।
विस्तार
पंजाब विधानसभा चुनावों को देखते हुए राज्य में सियासी पारा चढ़ गया है। एक तरफ जहां कैप्टन अमरिंदर सिंह फिर से सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस में चल रही अंदरूनी कलह को दूर करने में लगे हुए हैं। वहीं दूसरी ओर राज्य में सरकार बनाने के लिए बादल परिवार और उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम मायावती की पार्टियां करीब आ गई हैं। चुनाव को देखते हुए दोनों दलों में सीटों का भी बंटवारा हो गया है। हालांकि पंजाब बहुजन समाज पार्टी के नेताओं को शिरोमणि अकाली दल के साथ गठजोड़ नागवार गुजर रहा है। पार्टी नेताओं का कहना है कि गठबंधन में जिस तरह से सीटों का बंटवारा हुआ है, उस तरह से राज्य में बसपा को एक भी सीट हासिल नहीं होगी।
विरोध करने वाले नेताओं को दिखाया बाहर का रास्ता
दोनो दलों के बीच हुए सीट बंटवारे के फॉर्मूले के अनुसार राज्य की 117 विधानसभा सीटों में से बसपा 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और शिरोमणि अकाली दल 97 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेंगी। राज्य बीएसपी के नेता इस सीट बंटवारे से खुश नहीं हैं। नाराज नेताओं ने सीट बंटवारे को लेकर अपनी बात हाईकमान तक भी पहुंचा दी है। हाईकमान ने फैसले के विरोध में आवाज उठाने वाले सभी नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बसपा ने जून में अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रशपाल राजू को पार्टी के गठजोड़ के खिलाफ आवाज उठाने के कारण निष्कासित कर दिया था। वहीं, पार्टी की ओबीसी इकाई के अध्यक्ष सुखबीर सिंह शालीमार भी इस फैसले के विरोध में अपना इस्तीफ़ा दे चुके हैं। नाराज पार्टी कार्यकर्ता साझा फ्रंट पंजाब के बैनर तले ओबीसी और दलितों का एक नया मोर्चा तैयार करने में जुट गए हैं। वहीं, अमर उजाला ने जब इस मामले में जब बसपा की पंजाब इकाई के अध्यक्ष जसवीर सिंह गढ़ी से संपर्क की कोशिशें की, लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी।