रोली खन्ना
उम्र का हर दौर कुछ खास होता है। 42 से 60 साल की उम्र कई बदलाव झेलती है। मनोवैज्ञानिकों, मनोचिकित्सकों की मानें तो उम्र का यह पड़ाव जिन चुनौतियों को झेलता है उसे ‘मिडलाइफ क्राइसिस’ कहते हैं।
इसका सबसे ज्यादा शिकार घरेलू महिलाएं होती हैं। तनाव, बेचैनी, नींद न आना, नकारात्मकता बढ़ना जैसी दिक्कतें लेकर मनोवैज्ञानिकों के पास आने वाली महिलाओं में 15 फीसदी ‘मिडलाइफ क्राइसेस’ से पीड़ित होती हैं।
हालांकि, यह मानसिक बीमारी नहीं है, लेकिन ध्यान न देने पर कई व्यवहारिक विकृतियों का कारण बनता है।
बच्चे-पति व्यस्त तो हावी होने लगता है अकेलापन
मानसिक रोग विशेषज्ञ व संबल नशा उन्मूलन केन्द्र व मानसिक रोग अस्पताल की निदेशक डॉ. शशि राय कहती हैं कि एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम कई तरह से प्रभावित करता है। घरेलू महिलाएं 40-42 साल तक अपना समय परिवार को दे चुकी होती हैं। बड़े हो चुके बच्चे पढ़ाई, नौकरी के लिए बाहर जा चुके होते हैं या खुद में व्यस्त हो जाते हैं। उम्र के इस दौर में पुरुषों का फोकस नौकरी में प्रमोशन, बिजनेस बढ़ाने या महत्वाकांक्षा पूरी करने पर होता है। ऐसे में महिलाओं के पास करने को कुछ रह नहीं जाता और वे अकेला महसूस करती हैं। जीवन शैली के इन बदलाव पर कोई रिसर्च तो नहीं हुई, लेकिन उम्र की ये चुनौतियां बड़ी समस्या है। यह अंतर करना जरूरी है कि चेहरे से आग का भभका निकलना, तनाव, बैचेनी सिर्फ मेनोपाज का नतीजा नहीं होता, हालांकि लक्षण मिलते हैं।
ऐेसे समझें, कैसी है परेशानी
कानपुर रोड निवासी 45 वर्षीय महिला की परेशानी यह है कि उसके पास सारी सुख-सुविधाएं हैं, फिर भी अनिद्रा, बेचैनी के साथ नकारात्मकता महसूस होती है। लगता है कि उनकी अनदेखी की जा रही है। कभी लगता है कि ढलती उम्र में रूखापन हावी हो रहा है। छह महीने तक काउंसिलिंग के बाद अब वह फिट महसूस कर रही हैं। इस बीच उन्होंने आसपास के गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया है और सुबह टहलने भी जाती हैं।
लेने लगते हैं बिना सोचे फैसले
केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के डॉ. आदर्श त्रिपाठी कहते हैं कि महिला हो या पुरुष दोनों के जीवन में मिडलाइफ क्राइसिस वह दौर होता है जब वे बिना सोचे फैसले लेेने लगते हैं। नशे की लत या विवाहेतर संबंधों की गलती भी कर बैठते हैं। पहचान का संकट इसमें बड़ी भूमिका अदा करता है।
समय से पहले करें दूसरी पारी की शुरुआत
मनोवैज्ञानिकों व मनोचिकित्सकों का कहना है कि 40 से पहले ही दूसरी पारी की तैयारी कर लें। बेहतर तरीका है कि सामाजिक सेवा, रचनात्मक कामों और नियमित व्यायाम या फिर अपने शौक को कुछ वक्त देना शुरू करें।