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UP Election 2022 No consensus on the names of candidates on 15 seats of SP so far
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UP Election 2022: कभी जो थे अपने, वही बढ़ा रहे चुनौती, फूंक-फूंक कर कदम रख रही सपा, 15 सीटों पर फंसा पेच
चंद्रभान यादव, अमर उजाला, लखनऊ
Published by: शाहरुख खान
Updated Wed, 26 Jan 2022 10:51 AM IST
सार
सपा ने 44 जिलों की 159 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं। पर, दूसरी तरफ देखें तो इन्हीं जिलों की 15 सीटों पर अब तक उम्मीदवारों के नाम पर सहमति नहीं बन पाई है। इसे लेकर मंथन का दौर जारी है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि कहीं भी एक चूक आसपास की कई सीटों को प्रभावित कर सकती है।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव।
- फोटो : अमर उजाला
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कभी जो सपा के अपने थे। जो पार्टी के काम में जी-जान से जुटे रहते थे, वही इस बार पार्टी की चुनौती बढ़ा रहे हैं। कुछ दूसरे दल में जाकर सपा का रथ रोकने की कोशिशों में जुटे हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं जो दल में रहते हुए चुनावी गणित बिगाड़ सकते हैं। वहीं, परंपरागत व जाति बहुल वाली सीटों पर दूसरी जाति या वर्ग के दावेदार उतारने से भी समीकरणों को लेकर जोखिम बढ़ा है। बहरहाल, पार्टी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।
सपा ने 44 जिलों की 159 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं। पर, दूसरी तरफ देखें तो इन्हीं जिलों की 15 सीटों पर अब तक उम्मीदवारों के नाम पर सहमति नहीं बन पाई है। इसे लेकर मंथन का दौर जारी है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि कहीं भी एक चूक आसपास की कई सीटों को प्रभावित कर सकती है।
इसीलिए जहां अंतर्द्वंद्व ज्यादा हैं, वहां के टिकट रोक लिए गए हैं। मसलन, सीतापुर जिले की सिधौली सीट पर बसपा से आए नेता ने दावा ठोका है, जबकि पुराने सपाई भी दावेदार हैं। इसी तरह लखीमपुर खीरी जिले की धौरहरा, मोहम्मदी सीट पर भी उम्मीदवार को लेकर पेच फंसा हुआ है।
हरदोई जिले की सवायजपुर और बालामऊ सीट के लिए भी उम्मीदवार तय नहीं हो सके हैं। अलबत्ता, संडीला में सपा के साथ गठबंधन में शामिल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने अपना उम्मीदवार उतार दिया है। उन्नाव की बांगरमऊ सीट पर भी पेच फंसा हुआ है। औरैया की बिधूना पर भी उम्मीदवार तय नहीं है। बुंदेलखंड की बबेरू, बांदा, चित्रकूट और मानिकपुर में उम्मीदवार तय करने में पसीने छूट रहे हैं।
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के खास सिपहसालार और सात बार से विधायक व सपा सरकार में मंत्री रहे फर्रुखाबाद के नरेंद्र सिंह यादव को इस बार चुनाव मैदान में नहीं उतारा गया है। उनका टिकट काट कर एक तरह से जिला पंचायत चुनाव का बदला लिया गया है। नरेंद्र की बेटी भाजपा के समर्थन से जिला पंचायत अध्यक्ष बनी थी। पर, वह सपा में ही हैं। उनकी सीट अमृतपुर पर डॉ. जितेंद्र सिंह यादव को उतारा गया है।
नरेंद्र की पकड़ फर्रुखाबाद के अलावा कन्नौज, एटा में भी मानी जाती है। ऐसे में पार्टी को उनकी अनदेखी का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इसी तरह मुरादाबाद के विधायक हाजी इकराम कुरैशी का टिकट काट दिया गया है। बदायूं के सहसवान से पांच बार विधायक रहे और 2017 में मोदी लहर के बाद भी सपा के टिकट पर विधायक बनने वाले ओमकार सिंह का भी टिकट काट दिया गया है। वह भी सपा के लिए चुनौती बन सकते हैं।
दल से अलग होकर ये दे रहे चुनौती
हरदोई में सपा से अलग होकर भाजपा में गए नरेश अग्रवाल और उनके बेटे नितिन अग्रवाल जिले की विभिन्न सीटों पर चुनौती दे रहे हैं। फिरोजाबाद में मुलायम के समधी हरिओम यादव भाजपा में जाने के बाद सपा के रथ को रोकने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। इसी तरह शाहजहांपुर में सपा के विधायक शरदवीर सिंह, मुरादाबाद की कुंदरकी सीट पर हाजी रिजवान भी चुनौती दे रहे हैं।
सीटों के बदलाव से भी बढ़ सकती है चुनौती
सपा में परंपरागत सीटों पर भी दूसरी जाति के उम्मीदवार उतारे जा रहे हैं। पूर्वांचल में कई सीटों पर सपा इस तरह का प्रयोग करने की तैयारी में है। बसपा की एक विधायक को उनकी मूल सीट छोड़कर गृह क्षेत्र वाली सीट पर चुनावी तैयारी करने के लिए कहा गया है। ऐसे में यादव बहुल सीट पर नेताओं में आक्रोश दिखने लगा है। पार्टी कार्यालय पहुंच रहे नेताओं का कहना है कि यदि संबंधित सीट पर दूसरी जाति का उम्मीदवार मैदान में आया तो भविष्य में उस सीट पर यादव का दावा खत्म हो जाएगा। कुछ ऐसी ही स्थिति मुस्लिम बहुल सीटों पर भी है।
पार्टी जिताऊ और टिकाऊ उम्मीदवार को ही मैदान में उतार रही है। विभिन्न दलों से आए नेताओं में जिनकी जनता में अच्छी पकड़ है और जो चुनाव जीतने की स्थिति में हैं, उन्हें ही टिकट दिया जा रहा है। कहीं कोई विरोध नहीं है। जिन नेताओं को टिकट नहीं दिए गए हैं, उन्हें समझाया गया है कि भविष्य में मौका दिया जाएगा। भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए वे दिल बड़ा रखें। जो लोग दल छोड़कर चले गए हैं, उनके विरोध का कोई मतलब नहीं है। राजेंद्र चौधरी, मुख्य प्रवक्ता, सपा
विस्तार
कभी जो सपा के अपने थे। जो पार्टी के काम में जी-जान से जुटे रहते थे, वही इस बार पार्टी की चुनौती बढ़ा रहे हैं। कुछ दूसरे दल में जाकर सपा का रथ रोकने की कोशिशों में जुटे हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं जो दल में रहते हुए चुनावी गणित बिगाड़ सकते हैं। वहीं, परंपरागत व जाति बहुल वाली सीटों पर दूसरी जाति या वर्ग के दावेदार उतारने से भी समीकरणों को लेकर जोखिम बढ़ा है। बहरहाल, पार्टी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।
सपा ने 44 जिलों की 159 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं। पर, दूसरी तरफ देखें तो इन्हीं जिलों की 15 सीटों पर अब तक उम्मीदवारों के नाम पर सहमति नहीं बन पाई है। इसे लेकर मंथन का दौर जारी है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि कहीं भी एक चूक आसपास की कई सीटों को प्रभावित कर सकती है।
इसीलिए जहां अंतर्द्वंद्व ज्यादा हैं, वहां के टिकट रोक लिए गए हैं। मसलन, सीतापुर जिले की सिधौली सीट पर बसपा से आए नेता ने दावा ठोका है, जबकि पुराने सपाई भी दावेदार हैं। इसी तरह लखीमपुर खीरी जिले की धौरहरा, मोहम्मदी सीट पर भी उम्मीदवार को लेकर पेच फंसा हुआ है।
हरदोई जिले की सवायजपुर और बालामऊ सीट के लिए भी उम्मीदवार तय नहीं हो सके हैं। अलबत्ता, संडीला में सपा के साथ गठबंधन में शामिल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने अपना उम्मीदवार उतार दिया है। उन्नाव की बांगरमऊ सीट पर भी पेच फंसा हुआ है। औरैया की बिधूना पर भी उम्मीदवार तय नहीं है। बुंदेलखंड की बबेरू, बांदा, चित्रकूट और मानिकपुर में उम्मीदवार तय करने में पसीने छूट रहे हैं।
ये दल में रहकर बिगाड़ सकते हैं खेल
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के खास सिपहसालार और सात बार से विधायक व सपा सरकार में मंत्री रहे फर्रुखाबाद के नरेंद्र सिंह यादव को इस बार चुनाव मैदान में नहीं उतारा गया है। उनका टिकट काट कर एक तरह से जिला पंचायत चुनाव का बदला लिया गया है। नरेंद्र की बेटी भाजपा के समर्थन से जिला पंचायत अध्यक्ष बनी थी। पर, वह सपा में ही हैं। उनकी सीट अमृतपुर पर डॉ. जितेंद्र सिंह यादव को उतारा गया है।
नरेंद्र की पकड़ फर्रुखाबाद के अलावा कन्नौज, एटा में भी मानी जाती है। ऐसे में पार्टी को उनकी अनदेखी का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इसी तरह मुरादाबाद के विधायक हाजी इकराम कुरैशी का टिकट काट दिया गया है। बदायूं के सहसवान से पांच बार विधायक रहे और 2017 में मोदी लहर के बाद भी सपा के टिकट पर विधायक बनने वाले ओमकार सिंह का भी टिकट काट दिया गया है। वह भी सपा के लिए चुनौती बन सकते हैं।
दल से अलग होकर ये दे रहे चुनौती
हरदोई में सपा से अलग होकर भाजपा में गए नरेश अग्रवाल और उनके बेटे नितिन अग्रवाल जिले की विभिन्न सीटों पर चुनौती दे रहे हैं। फिरोजाबाद में मुलायम के समधी हरिओम यादव भाजपा में जाने के बाद सपा के रथ को रोकने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। इसी तरह शाहजहांपुर में सपा के विधायक शरदवीर सिंह, मुरादाबाद की कुंदरकी सीट पर हाजी रिजवान भी चुनौती दे रहे हैं।
सीटों के बदलाव से भी बढ़ सकती है चुनौती
सपा में परंपरागत सीटों पर भी दूसरी जाति के उम्मीदवार उतारे जा रहे हैं। पूर्वांचल में कई सीटों पर सपा इस तरह का प्रयोग करने की तैयारी में है। बसपा की एक विधायक को उनकी मूल सीट छोड़कर गृह क्षेत्र वाली सीट पर चुनावी तैयारी करने के लिए कहा गया है। ऐसे में यादव बहुल सीट पर नेताओं में आक्रोश दिखने लगा है। पार्टी कार्यालय पहुंच रहे नेताओं का कहना है कि यदि संबंधित सीट पर दूसरी जाति का उम्मीदवार मैदान में आया तो भविष्य में उस सीट पर यादव का दावा खत्म हो जाएगा। कुछ ऐसी ही स्थिति मुस्लिम बहुल सीटों पर भी है।
कहीं कोई विरोध नहीं
पार्टी जिताऊ और टिकाऊ उम्मीदवार को ही मैदान में उतार रही है। विभिन्न दलों से आए नेताओं में जिनकी जनता में अच्छी पकड़ है और जो चुनाव जीतने की स्थिति में हैं, उन्हें ही टिकट दिया जा रहा है। कहीं कोई विरोध नहीं है। जिन नेताओं को टिकट नहीं दिए गए हैं, उन्हें समझाया गया है कि भविष्य में मौका दिया जाएगा। भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए वे दिल बड़ा रखें। जो लोग दल छोड़कर चले गए हैं, उनके विरोध का कोई मतलब नहीं है। राजेंद्र चौधरी, मुख्य प्रवक्ता, सपा
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