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मुख्तार के लोग मेरे घरवालों पर नजर रखे हैं: पहले लालच, फिर डराकर माफिया कर रहे जेलों में राज, जो नहीं झुकते...
अमर उजाला नेटवर्क, लखनऊ
Published by: शाहरुख खान
Updated Tue, 21 Mar 2023 12:55 PM IST
सार
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जेलों में भ्रष्टाचार के तमाम मामले सामने आते रहते हैं लेकिन जेल कार्मिकों व उनके परिजनों की सुरक्षा और माफिया व अपराधियों के खौफ की चर्चा तक नहीं होती है। हालात ये हैं कि कई जेलकर्मियों को फर्ज निभाने के दौरान अपनी जान भी गंवानी पड़ती है। पिछले ढाई दशक में 17 जेलकर्मी कर्तव्य निभाते हुए अपनी जान गंवा चुके हैं। इनमें जेल वार्डर से जेलर तक शामिल हैं।
जेलों में बंद माफिया और अपराधी वहां तमाम सुविधाएं पाने के लिए पहले जेल कार्मिकों को पहले लालच देते हैं, फिर डराते और परिवार का भय दिखाते हैं। इस पर भी जो नहीं झुकते हैं, वे अपने को खतरा महसूस करते हैं। जेल अधिकारियों और कर्मचारियों को अपने प्रभाव में लेने का ये बरसों पुराना तरीका आज भी अपनाया जा रहा है।
जेलों में भ्रष्टाचार के तमाम मामले सामने आते रहते हैं लेकिन जेल कार्मिकों व उनके परिजनों की सुरक्षा और माफिया व अपराधियों के खौफ की चर्चा तक नहीं होती है। हालात ये हैं कि कई जेलकर्मियों को फर्ज निभाने के दौरान अपनी जान भी गंवानी पड़ती है। पिछले ढाई दशक में 17 जेलकर्मी कर्तव्य निभाते हुए अपनी जान गंवा चुके हैं। इनमें जेल वार्डर से जेलर तक शामिल हैं।
जेल में सुधार के सभी प्रयोग हुए विफल
जेलों में सुधार करने के लिए कई राज्यों में प्रयोग हुए लेकिन सभी विफल रहे। दो साल पहले उत्तराखंड में जेल अधिकारियों की कमी को दूर करने के लिए एएसपी रैंक के अफसरों की तैनाती की गई तो मामला हाईकोर्ट चला गया। कोर्ट ने जेल संवर्ग के अधिकारियों को ही प्रोन्नत करने का आदेश दिया। इसके बाद एएसपी को हटाना पड़ा।
इसी तरह पंजाब में पुलिस अधिकारियों की तैनाती हुई तो उन्होंने सुरक्षा पर ही सवाल उठा दिए। वहीं, अपराधियों ने भी पुलिस अधिकारियों की घेराबंदी के लिए तमाम जगहों पर शिकायतें करनी शुरू कर दी। दिल्ली की तिहाड़ जेल में सुरक्षा के लिहाज से अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की गई लेकिन वहां पर मोबाइल, नशा आदि पर लगाम नहीं लगाई जा सकी।
हथियार चलाने की ट्रेनिंग नहीं
यूपी में डिप्टी जेलर या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी को आर्मरी से नाइन एमएम की पिस्टल मुहैया कराई जाती है लेकिन उसे चलाने का कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। जेल अफसरों की सुरक्षा पर खतरा होने पर स्थानीय एसपी की मर्जी पर गनर मिलता है, पर उसे दो माह में ही वापस ले लिया जाता है।
दोबारा गनर पाने के लिए जेल अफसरों को फिर से एसपी के पास जाकर आवेदन करना पड़ता है। वरिष्ठ जेल अधीक्षक अथवा अधीक्षक को दो सिपाही मिलते हैं। इनमें से एक उनकी सुरक्षा में साथ चलता है और दूसरा घर पर तैनात रहता है। इनको भी हथियार चलाने का कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है।
केस-1
चित्रकूट जेल के एक अधिकारी कुछ दिन पहले प्रशिक्षण पर लखनऊ आए। अफसरों से कहा कि सर, मुख्तार के लोग मेरे घरवालों पर नजर रखे हैं। मुझसे बोले, हमें पता है कि आपकी बेटी गाजीपुर के कॉलेज में पढ़ रही हैं। अधिकारी ने इसका मुकदमा दर्ज नहीं कराया। वर्तमान में वह माफिया अब्बास अंसारी को सुविधाएं देने के आरोप में जेल में हैं।
केस-2
बरेली जेल के एक अधिकारी अपने बेटे को दस किमी दूर स्कूल छोड़ने और लेने जाते हैं। जेल में बंद माफिया और कुख्यात अपराधियों पर शुरुआती दौर में की गई सख्ती के बाद धमकियों का दौर शुरू हो गया तो एहतियात के तौर पर बेटे को किसी दूसरे साथ स्कूल भेजने से डरने लगे।
ऐसे मामलों की शिकायत मिलने पर बंदियों की जेल बदल दी जाती है। उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया जाता है जिससे सजा की अवधि बढ़ जाती है। जेल में मुलाकात और परिजनों से फोन पर बात करने की सुविधा बंद कर दी जाती है। खतरनाक अपराधी होने पर उसे हाई सिक्योरिटी बैरक में सीसीटीवी की निगरानी में रखा जाता है। हाल ही में फतेहगढ़ जेल के बंदी दिलीप मिश्रा ने पेशी से लौटने के बाद जेलर से अभद्रता की थी, जिसके बाद उसकी जेल बदल दी गई। - आनंद कुमार, डीजी, जेल
जेलकर्मियों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। मैं खुद कुछ जेलों का भ्रमण कर हालात का जायजा लूंगा। इसके बाद नए तरीके से प्रशिक्षण देने की रूपरेखा तय की जाएगी। जेलों में लगातार सुधार कार्य किए जा रहे हैं। इस कमी को भी जल्द दूर कर लिया जाएगा।- धर्मवीर प्रजापति, कारागार एवं मंत्री
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