केजीएमयू में एचआरएफ की दवाओं में हो रही सेंधमारी रोकने के लिए अब तकनीक का सहारा लेने पर भी विचार किया जा रहा है। इसके तहत ऐसी व्यवस्था लागू करने की तैयारी है, जिसमें मरीज की आईडी पर दवाएं जनरेट करने का काम संविदा कर्मचारियों के बजाय डॉक्टरों को दिया जा सके। ऐसे में कर्मचारी अपने आप दवाएं भरकर स्टोर से नहीं निकाल पाएंगे।
नई व्यवस्था में ओपीडी के विशिष्ट सॉफ्टवेयर में पहले से एचआरएफ में उपलब्ध दवाओं के नाम लिखे होंगे। ओपीडी में क्लिक करते ही वे दवाएं मरीज की आईडी पर चढ़ जाएंगी। इसके बाद भुगतान करके वे दवाएं एचआरएफ स्टोर से मिल जाएंगी। ऐसा होने पर दवाओं की संख्या या मात्रा में हेरफेर करना संभव नहीं होगा। हालांकि ऑनलाइन आधारित ओपीडी में सबसे बड़ी चुनौती मरीजों की भीड़ से निपटने की है। ऑनलाइन प्रिस्क्रिप्शन लिखना समय खपाने वाला काम है। हालांकि केजीएमयू ने इसके विकल्प के लिए प्रिस्क्रिप्शन के लिए विशेषज्ञ तैयार करने की योजना तैयार की है।
डॉक्टरों के विरोध के बाद पूर्व में बंद करनी पड़ी थी व्यवस्था
केजीएमयू में पूर्व कुलपति प्रो. रविकांत के समय में वर्ष 2014 से 2017 तक सॉफ्टवेयर आधारित व्यवस्था थी। उस समय इसका मुख्य मकसद मरीज की केस हिस्ट्री ऑनलाइन तैयार करना था। अगले कुलपति प्रो. एमलएबी भट्ट के कार्यकाल में यह व्यवस्था डॉक्टरों के भारी विरोध के बाद समाप्त करनी पड़ी थी।
कमेटी ने शुरू की पूछताछ
कमेटी ने शनिवार को अपनी जांच शुरू कर दी। सात सदस्यीय कमेटी ने शनिवार को आठ कर्मचारियों से पूछताछ की। इसमें एसटीएफ के हत्थे चढ़े रजनीश कुमार के साथ काम करने वाले चार कर्मचारी भी शामिल हैं, जिनके नाम उसने उगले थे। चार में से शनिवार को सिर्फ तीन कर्मचारी ही अपना बयान दर्ज कराने पहुंचे। कमेटी ने करीब दो घंटे पूछताछ की। वहीं एक कर्मचारी ने अपना फोन स्विच ऑफ कर लिया है।
डॉक्टर के करीबी की भूमिका संदिग्ध
जांच के दौरान एक डॉक्टर की भूमिका संदिग्ध मिलने की बात सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि बाराबंकी निवासी एक व्यक्ति यहां के डॉक्टर का करीबी है। जांच टीम को यह बात भी पता चली है कि ज्यादातर आउटसोर्सिंग कर्मचारी पहले से ही एक दूसरे के परिचित हैं। इसी वजह से इस तरह काम करने में उनको आसानी हो गई।