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कारवां गुजर गया...ने रातोंरात बदल दी गोपाल दास नीरज की जिंदगी, जानें- उनकी खास बातें

नीरज ‘अम्बुज’/अमर उजाला, लखनऊ Updated Fri, 20 Jul 2018 12:43 PM IST
story of poet gopal das neeraj.
गोपाल दास नीरज

‘आंसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा। जहां प्रेम की चर्चा होगी, मेरा नाम लिया जाएगा।’ गीतों के राजकुमार पद्मभूषण गोपालदास नीरज की रचनाओं में दर्द और प्रेम की अभिव्यक्ति एक साथ देखने को मिलती थी। नीरज ने दुनिया को भले ही अलविदा कह दिया हो, लेकिन उनके गीत हमेशा लोगों की जुबां पर रहेंगे, दिलों में गुनगुनाए जाएंगे और मंचों से सुनाए जाएंगे। मशहूर गीतकार ने समय-समय पर ‘अमर उजाला’ से हुई बातचीत और मंचों पर प्रस्तुति के दौरान अपने ढेरों संस्मरण साझा किए। पेश है रिपोर्ट :



5 रुपये में चलता था परिवार
यह साल था 1938 का। नीरज के पिता का देहांत कम उम्र में ही हो गया था। उनके फूफाजी हर महीने सिर्फ 5 रुपये भेजते थे, जिससे एटा में रह रहे तीन भाइयों, मां व नानाजी का खर्च चलता था। एक रुपये में सेर भर शुद्ध देसी घी मिल जाता था। हालांकि जब नून, तेल, लकड़ी से लेकर जरूरत की हर चीज के दाम आसमान छूने लगे तो उन्हें अपनी मुफलिसी सालती थी।


अकाल पीड़ितों के लिए नि:शुल्क काव्यपाठ
1942 का यह वह दौर था, जब नीरज नि:शुल्क कविताओं का पाठ करते थे। हरिवंश राय बच्चन ने पहली बार काव्यपाठ के लिए फीस ली थी, जिसके बाद फिरोजाबाद में नीरज को मंच मिला तो काव्यपाठ के लिए 5 रुपये मिले। उन्होंने ‘मुझको जीवन आधार नहीं मिलता है, आशाओं का संसार नहीं मिलता है’ पंक्तियां सुनाईं। उन्होंने कोलकाता में पड़े भीषण अकाल के दौरान नि:शुल्क काव्यपाठ किया। इससे एकत्र राशि को पीड़ितों की सहायता में खर्च किया गया था।

...और इस तरह बदल गई जिंदगी

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1960 के दशक में ऑल इंडिया रेडियो पर पहली बार ‘कारवां गुजर गया...’ गीत प्रसारित हुआ। इस गीत ने गोपालदास नीरज को रातोंरात हीरो बना दिया था। इसके बाद वर्ष 1960 में फिल्मकार आर चंद्रा के आमंत्रण पर उन्होंने फिल्म ‘नई उमर की नई फसल’ में गीत लिखा, ‘नई उमर की नई फसल का क्या होगा’। इसके बाद बॉलीवुड में उनके चाहने वालों का कारवां बढ़ता गया। देवानंद, राजकुमार की ओर से कई ऑफर मिले और उन्होंने फिल्मों के गीत लिखे।

अब न वो जाम, न वो मय, न वो पैमाने रहे...
‘अब न वो दर्द न वो दिल न वो दीवाने रहे, अब न वो साज न वो सोज न वो गाने रहे, साकी अब भी तू यहां किसके लिए बैठा है, अब न वो जाम, न वो मय, न वो पैमाने रहे’। नीरज कवि सम्मेलनों में होने वाली चुटकुलेबाजी पर कुछ ऐसे ही कोफ्त जाहिर करते थे। वे हमेशा कहते थे कि मंच पर अब कविताएं नहीं पढ़ी जातीं, सिर्फ चुटकलेबाजी ही होती है। न वो कवि हैं जो मर्म को शब्दों में ढाल सकें और न ही उनकी कद्र करने वाले श्रोता।

अटल जैसी थी कुंडली
नीरज मंच से कई बार कहते थे, भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी और मेरी कुंडली एक ही है। जब चंद्रमा बदला तो वह प्रधानमंत्री बन गए और मैं गीतकारों की दुनिया में मशहूर हो गया...।

...और बाउंस हो गया चेक

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नीरज ने एक बार मंच से मशहूर संगीतकार मदन मोहन से जुड़ा वाकया सुनाया था। उन्होंने कहा था, मदन मोहन गजल के मास्टर थे, रिद्म पर ध्यान देते थे। उन्होंने मुझसे दो गाने लिखवाए और चेक  दिया, लेकिन वह बाउंस हो गया...। इस पर सभागार में ठहाके गूंज उठे थे।

...जब राजकपूर की छूट पड़ी हंसी
गोपाल दास नीरज ने बॉलीवुड की तीन पीढ़ियों के साथ काम किया। फिल्म ‘कल आज और कल’ में पृथ्वीराज चौहान, राजकपूर और रणधीर कपूर थे। नीरज ने उस फिल्म के लिए गीत लिखे। पृथ्वीराज के साथ पुराना संबंध था, जब मुंबई गए और सुनाया,  ‘आए हैं तो काम भी बताइए, पहले जरा आप मुस्कुराइए...’ तो राजकपूर हंस पड़े।

डाकुओं के सरदार ने लूटने के बजाय दिया इनाम

नीरज एक बार इटावा के किसी गांव से काव्यपाठ करके लौट रहे थे। जीप जंगल से गुजर रही थी कि डीजल खत्म हो गया। घुप्प अंधेरे में दो नकाबपोश डाकुओं ने घेर लिया और अपने सरदार दद्दा के पास ले गए। दद्दा चारपाई पर लेटे हुए थे। डीजल खत्म होने की बात बताई तो दद्दा बोले-पहले भजन सुनाओ, फिर हम मानेंगे। इस पर नीरज ने कई भजन सुनाए। दद्दा ने जेब से सौ रुपये निकालकर दिए और कहा-बहुत अच्छा गा लेते हो। बात में उन्हें जानकारी मिली कि दद्दा बागी सरदार माधौ सिंह थे।
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