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Lucknow : विचाराधीन कैदियों से बेहाल हैं उत्तर प्रदेश के जेल, दस साल में बढ़ गये 30 प्रतिशत बंदी

अमर उजाला नेटवर्क, लखनऊ Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Sat, 03 Jun 2023 05:53 AM IST
सार

बीते दस वर्षों में जेलों में सजायाफ्ता बंदियों की संख्या में जहां करीब पांच प्रतिशत का इजाफा हुआ, वहीं विचाराधीन बंदियों की संख्या 30 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है।

Prisons in Uttar Pradesh are suffering from undertrials
मुरादाबाद जेल - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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प्रदेश की जेलों में विचाराधीन बंदियों की बढ़ती संख्या चिंता का सबब बनती जा रही है। बीते दस वर्षों में जेलों में सजायाफ्ता बंदियों की संख्या में जहां करीब पांच प्रतिशत का इजाफा हुआ, वहीं विचाराधीन बंदियों की संख्या 30 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है। वर्तमान में सर्वाधिक बंदी मुरादाबाद जेल में हैं। इस जेल में क्षमता से 4.47 गुना अधिक बंदी हैं।



बताते चलें कि प्रदेश में केंद्रीय कारागार, जिला कारागार, उप कारागार आदि में क्षमता से 173 प्रतिशत अधिक बंदी हैं। इनमें से 62 जिला कारागारों में वर्तमान में क्षमता से 194 प्रतिशत अधिक बंदी होने से हालात बदतर होते जा रहे हैं। जिला कारागारों में 15,736 सजायाफ्ता और करीब 80 हजार विचाराधीन बंदी हैं। नौ जिला कारागारों में बंदियों की संख्या तीन गुना से अधिक है।


इनमें मुरादाबाद, देवरिया, ज्ञानपुर, सहारनपुर, जौनपुर, वाराणसी, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर और मथुरा शामिल है। इसके अलावा छह केंद्रीय कारागारों में से नैनी में क्षमता से 1.98 गुना, आगरा में 1.56 गुना, वाराणसी में 1.47 गुना, बरेली में 1.23 गुना अधिक बंदी हैं। बीते दस वर्षो के आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2014 में प्रदेश की जेलों में विचाराधीन बंदियों की संख्या 60,681 थी, जो वर्ष 2023 में बढ़कर 86 हजार से अधिक हो चुकी है।

गाजियाबाद की कोर्ट ने किया आगाह
जेलों में विचाराधीन बंदियों की बढ़ती संख्या को लेकर गाजियाबाद की अदालत ने आगाह किया है। दरअसल, गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट ने शांति भंग की आशंका में 535 लोगों को जेल भेज दिया था। इस पर अपर जिला जज सुनील प्रसाद पुलिस कमिश्नर को पत्र भेजकर हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करने को कहा है।

अदालत ने याद दिलाया कि धारा 107, 116, 151 के तहत होने वाली कार्रवाई निरोधात्मक होती है, दंडात्मक नहीं। न्यायाधीश ने इन धाराओं में गिरफ्तार लोगों को सुनवाई का अवसर देने, जमानत निर्धारित करते समय बंदी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को देखने, जमानत की शर्तों में शिथिलता बरतने समेत कई अहम निर्देश दिए हैं।

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