न्यूज डेस्क, अमर उजाला, लखनऊ
Updated Wed, 13 Jan 2021 12:55 PM IST
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इसी महीने होने जा रहे विधान परिषद चुनाव उच्च सदन में राजनीतिक दलों की सीटों की संख्या का आंकड़ा जरूर बदलेंगे, लेकिन फिलहाल समीकरण बदलने वाले नहीं हैं। भाजपा की चुनौतियां ज्यों की त्यों बनी रहेंगी।
चुनावी वर्ष 2022 से ठीक पहले का वर्ष होने के नाते इस साल इन चुनौतियों का राजनीतिक तौर पर न सिर्फ अलग महत्व हो गया है बल्कि भाजपा के राजनीतिक व रणनीतिक कौशल के अलग तरीके से इम्तिहान की भी घड़ी आ गई है।
दरअसल, विधान परिषद की जिन 12 सीटों का चुनाव इस महीने होने जा रहा है उसमें विधायकों के संख्या बल को देखते हुए भाजपा के हिस्से में कम से कम 10 सीटें आने की संभावना दिख रही है।
इसके विपरीत सपा के खाते में काफी कोशिशों और दूसरे दलों से सहयोग लेने के बावजूद ज्यादा से ज्यादा दो सीटें ही जाने के समीकरण दिखाई दे रहे हैं जबकि उसके 6 सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। सदन में इस समय सपा के 55 सदस्य हैं।
वैसे तो उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा सहित भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव और पार्टी के उपाध्यक्ष लक्ष्मण आचार्य का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है। पर, भाजपा 10 सदस्यों को सदन में भेजने की स्थिति में है। इस प्रकार भाजपा को सात सदस्यों का लाभ होना तय है। सदन में इस समय भाजपा के सदस्यों की संख्या 25 है।
भाजपा उच्च सदन में किसे भेजेगी इस बहस में उलझे बिना यदि सिर्फ गणित की बात की जाए तो परिषद में सत्तारूढ़ दल के सदस्यों की संख्या 32 हो जाएगी। उधर, सपा को चार सदस्यों के नुकसान के बावजूद सदन में उसका आंकड़ा 51 रहेगा। किन्हीं कारण, सपा यदि दो सदस्य नहीं भेज पाती है तो भी एक तो जाएगा ही। तब भी भाजपा पर सपा भारी रहेगी। ऐसे में भाजपा को सदन में प्रबंधन करके ही चलना पड़ेगा।
वहीं बसपा की बात करें तो जिन 12 सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है उसमें इस पार्टी के दो सदस्य हैं। इसी पार्टी के नेता रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी की सदस्यता पहले ही समाप्त हो चुकी है।
विधायकों का आंकड़ा देखते हुए फिलहाल बसपा से किसी के उच्च सदन जाने की स्थिति नहीं दिख रही है। बशर्ते राज्यसभा के चुनाव की तरह कोई नाटकीय घटनाक्रम न घटे। चूंकि यह वर्ष विधानसभा चुनाव से ठीक पहले का है।
ऐसे में प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल होने के नाते सपा अपने संख्या बल का उपयोग करके सदन के जरिये लोगों को यह संदेश देने की कोशिश जरूर करेगी कि भाजपा का बेहतर विकल्प वही है।
इसी महीने होने जा रहे विधान परिषद चुनाव उच्च सदन में राजनीतिक दलों की सीटों की संख्या का आंकड़ा जरूर बदलेंगे, लेकिन फिलहाल समीकरण बदलने वाले नहीं हैं। भाजपा की चुनौतियां ज्यों की त्यों बनी रहेंगी।
चुनावी वर्ष 2022 से ठीक पहले का वर्ष होने के नाते इस साल इन चुनौतियों का राजनीतिक तौर पर न सिर्फ अलग महत्व हो गया है बल्कि भाजपा के राजनीतिक व रणनीतिक कौशल के अलग तरीके से इम्तिहान की भी घड़ी आ गई है।
दरअसल, विधान परिषद की जिन 12 सीटों का चुनाव इस महीने होने जा रहा है उसमें विधायकों के संख्या बल को देखते हुए भाजपा के हिस्से में कम से कम 10 सीटें आने की संभावना दिख रही है।
इसके विपरीत सपा के खाते में काफी कोशिशों और दूसरे दलों से सहयोग लेने के बावजूद ज्यादा से ज्यादा दो सीटें ही जाने के समीकरण दिखाई दे रहे हैं जबकि उसके 6 सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। सदन में इस समय सपा के 55 सदस्य हैं।
सदन की ये है गणित
वैसे तो उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा सहित भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव और पार्टी के उपाध्यक्ष लक्ष्मण आचार्य का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है। पर, भाजपा 10 सदस्यों को सदन में भेजने की स्थिति में है। इस प्रकार भाजपा को सात सदस्यों का लाभ होना तय है। सदन में इस समय भाजपा के सदस्यों की संख्या 25 है।
भाजपा उच्च सदन में किसे भेजेगी इस बहस में उलझे बिना यदि सिर्फ गणित की बात की जाए तो परिषद में सत्तारूढ़ दल के सदस्यों की संख्या 32 हो जाएगी। उधर, सपा को चार सदस्यों के नुकसान के बावजूद सदन में उसका आंकड़ा 51 रहेगा। किन्हीं कारण, सपा यदि दो सदस्य नहीं भेज पाती है तो भी एक तो जाएगा ही। तब भी भाजपा पर सपा भारी रहेगी। ऐसे में भाजपा को सदन में प्रबंधन करके ही चलना पड़ेगा।
सबसे ज्यादा नुकसान में बसपा
वहीं बसपा की बात करें तो जिन 12 सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है उसमें इस पार्टी के दो सदस्य हैं। इसी पार्टी के नेता रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी की सदस्यता पहले ही समाप्त हो चुकी है।
विधायकों का आंकड़ा देखते हुए फिलहाल बसपा से किसी के उच्च सदन जाने की स्थिति नहीं दिख रही है। बशर्ते राज्यसभा के चुनाव की तरह कोई नाटकीय घटनाक्रम न घटे। चूंकि यह वर्ष विधानसभा चुनाव से ठीक पहले का है।
ऐसे में प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल होने के नाते सपा अपने संख्या बल का उपयोग करके सदन के जरिये लोगों को यह संदेश देने की कोशिश जरूर करेगी कि भाजपा का बेहतर विकल्प वही है।