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UP: AKTU कुलपति प्रो. पीके मिश्रा को राजभवन ने हटाया, पद के दुरुपयोग और वित्तीय अनियमितता का आरोप

अमर उजाला नेटवर्क, लखनऊ Published by: विजय पुंडीर Updated Mon, 06 Feb 2023 11:06 AM IST
सार

राजभवन की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि विश्वविद्यालय के पूर्व परीक्षा नियंत्रक प्रो. अनुराग त्रिपाठी व आईईटी के पूर्व निदेशक प्रो. विनीत कंसल की ओर से प्राप्त शिकायत में काफी गंभीर आरोप प्रो. मिश्रा पर लगाए गए थे।

प्रो. पीके मिश्रा
प्रो. पीके मिश्रा - फोटो : अमर उजाला

विस्तार

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) के कुलपति प्रो. पीके मिश्रा को पद के दुरुपयोग और गंभीर वित्तीय अनियमितता के कारण हटाया गया है। इतना ही नहीं वह राजभवन की ओर से जारी दिशा-निर्देश और जांच में भी सहयोग नहीं करते रहे हैं। राजभवन की ओर से जारी पांच पेज के विस्तृत आदेश में प्रो. पीके मिश्रा को हटाने से संबंधित सभी कारण बताए गए हैं।



राजभवन की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि विश्वविद्यालय के पूर्व परीक्षा नियंत्रक प्रो. अनुराग त्रिपाठी व आईईटी के पूर्व निदेशक प्रो. विनीत कंसल की ओर से प्राप्त शिकायत में काफी गंभीर आरोप प्रो. मिश्रा पर लगाए गए थे। इसे देखते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन अग्निहोत्री की एक जांच कमेटी बनाई गई। जिसने अपनी प्राथमिक जांच में प्रथम दृष्टया सही पाया गया। इसके अनुसार प्रो. पीके मिश्रा ने आईएसएस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को रखने में गंभीर वित्तीय अनियमितता की और व्यक्तिगत हित साधा।


वहीं, 10 जनवरी 2023 को हुई कार्य परिषद की बैठक में पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर काम किया जबकि बैठक का कोरम पूरा नहीं था। बता दें कि इस बैठक में आईईटी के निदेशक प्रो. विनीत कंसल को हटाए जाने के निर्णय और पूर्व परीक्षा नियंत्रक प्रो. अनुराग त्रिपाठी आदि के त्यागपत्र पर मुहर लगाई गई थी। इस तरह विभिन्न मामलों में गड़बड़ी की शिकायत और जांच न्यायाधीश द्वारा एकत्र पर्याप्त सबूतों के आधार पर यह पाया गया कि प्रो. मिश्रा पद का दुरुपयोग कर हैं। जिसे देखते हुए उनको हटाने का निर्णय लिया गया।

जांच को नहीं दिए कागजात, सहयोग भी नहीं किया
इतना ही नहीं आदेश में यह उल्लेख किया गया है कि जब 27 जनवरी को राजभवन द्वारा एक जांच कमेटी बनाई गई। तो प्रो. पीके मिश्रा ने कमेटी को 10 जनवरी की कार्य परिषद की बैठक से संबंधित दस्तावेज, ऑडियो-वीडियो आदि कागजात भी नहीं उपलब्ध कराए। जिससे यह पता चलता है कि कुलपति व रजिस्ट्रार ने राजभवन के निर्देश की अवहेलना भी की। उन्होंने जान बूझकर न तो डाक्यूमेंट उपलब्ध कराए। उल्टे इंक्वायरी जज पर ही आरोप लगाते हुए एक फरवरी को उनको बदलने की मांग की। जो पूरी तरह से निराधार और मनगढंत थे और जांच को प्रभावित करने वाले थे। उनकी मांग को चार फरवरी को रिजेक्ट कर दिया गया।

तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई
राजभवन की ओर से प्रो. मिश्रा को कार्य से विरत करते हुए एक तीन सदस्यीय फाइनल इंक्वायरी कमेटी का गठन किया गया है। जो प्रो. पीके मिश्रा पर लगे आरोपों, शिकायतों व प्राप्त तथ्यों आदि की जांच करके अपनी रिपोर्ट देगी। जांच पूरी होने तक लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय को कार्यवाहक कुलपति तैनात किया जाता है। वहीं जांच होने तक प्रो. पीके मिश्रा को डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय से संबद्ध किया गया है।

पीके मिश्रा पर भारी पड़ा पाठक के खिलाफ जांच कमेटी बनाना

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) के निवर्तमान कुलपति प्रो. पीके मिश्रा की पूर्व कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक से छिड़ी रार उनके ऊपर ही भारी पड़ गई। हाल ही में प्रो. मिश्रा द्वारा यूजीसी में नवंबर में हुई शिकायत को आधार बनाकर प्रो. विनय पाठक के खिलाफ जांच कमेटी का गठन करना इसका मुख्य कारण बना ।

प्रो. पीके मिश्रा के कार्यभार संभालने के कुछ दिन बाद से ही विवि के पूर्व कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक से खींचतान शुरू हो गई थी। प्रो. मिश्रा उनके कार्य परिषद सदस्य बनने को लेकर काफी खिन्न थे। यही वजह रही कि कार्य परिषद की बैठकों में भी इसका असर नोकझोंक के रूप में दिखता रहा। वहीं जब प्रो. विनय पाठक के खिलाफ जांच शुरू हुई, तो एक-एक कर उनसे जुड़े रहे अधिकारियों पर कार्रवाई भी की गई। जो दोनों के बीच खींचतान को और बढ़ाने वाली रही।
 
इतना ही नहीं 27 जनवरी को जब राजभवन द्वारा विश्वविद्यालय में अनियमितता के आरोपों पर जांच कमेटी का गठन किया गया, तो इसके एक सप्ताह के अंदर एक फरवरी को प्रो. पीके मिश्रा द्वारा प्रो. विनय कुमार पाठक के कार्यकाल की जांच के लिए एक और कमेटी गठित कर दी गई। खास बात यह रही कि इसका आधार गत वर्ष नवंबर में यूजीसी में हुई शिकायत को बनाया गया। सवाल भी खड़ा हुआ कि नवंबर में हुई शिकायत पर फरवरी में जांच कमेटी क्यों? 

इसमें भी अन्य बिंदुओं के साथ-साथ एक बिंदु आगरा और एकेटीयू की कार्य परिषद में प्रो. पाठक को नामित करने का मामला रहा। इसकी वजह से इस जांच को राजभवन द्वारा गठित कमेटी का जवाब माना गया। अब इसकी परिणति प्रो. मिश्रा के कार्य विरत होने के रूप में सामने आई है।
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