चेहरे को नीचे झुकाकर ठुड्ढी को गर्दन से लगाने पर जालंधर बंध की स्थिति बनती है। इससे सुषुम्ना नाड़ी चलने लगती है और सिर के सबसे ऊपरी हिस्से में स्थित पीनियल ग्रंथि से स्रावित होने वाले हार्मोन का बहाव हृदय-क्षेत्र तक होने लगता है। इससे विशुद्धि चक्र भी जागृत होता है और हाइपोथैलियम ग्रंथि नियंत्रित होती है।
इससे आज्ञा चक्र और सहस्त्रार चक्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मन में दृढ़ता आती है। गर्दन की मांसपेशियों में रक्त संचार सही ढंग से होने लगता है। इसे नियमित करने से हमारे सिर, मस्तिष्क, आंख, नाक आदि का संचालन नियंत्रित रहता है।
चेहरे को नीचे झुकाकर ठुड्ढी को गर्दन से लगाने पर जालंधर बंध की स्थिति बनती है। इससे सुषुम्ना नाड़ी चलने लगती है और सिर के सबसे ऊपरी हिस्से में स्थित पीनियल ग्रंथि से स्रावित होने वाले हार्मोन का बहाव हृदय-क्षेत्र तक होने लगता है। इससे विशुद्धि चक्र भी जागृत होता है और हाइपोथैलियम ग्रंथि नियंत्रित होती है।
इससे आज्ञा चक्र और सहस्त्रार चक्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मन में दृढ़ता आती है। गर्दन की मांसपेशियों में रक्त संचार सही ढंग से होने लगता है। इसे नियमित करने से हमारे सिर, मस्तिष्क, आंख, नाक आदि का संचालन नियंत्रित रहता है।