वर्ष 1805 में जब देवजमनी पहली बार कृष्णराज वाडियार तृतीय से शादी के लिए मैसूर के शाही दरबार में पहुंचीं, तब उन दोनों की उम्र 12 साल थी। कृष्णराज वाडियार तृतीय दक्षिण भारत के एक राज्य से नए-नए शासक बने थे। पर देवजमनी को जल्द ही पता चल गया था कि उन्हें एक बड़े और महत्वपूर्ण काम के लिए चुना गया है और ये काम चेचक के टीके का प्रसार और प्रचार करना था। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के इतिहासकार डॉक्टर नाइजल चांसलर के अनुसार, लोगों में चेचक के टीके का प्रचार-प्रसार करने के लिए और उन्हें इसके इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से ईस्ट इंडिया कंपनी ने देवजमनी की भूमिका को एक पेंटिंग के रूप में उतारा।