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NFHS-5 Report: 24 साल तक की 50 फीसदी महिलाएं मासिक धर्म में अब भी कर रहीं कपड़े का उपयोग

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिवानी अवस्थी Updated Wed, 11 May 2022 05:35 PM IST
अशुद्ध कपड़े का उपयोग करने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है
अशुद्ध कपड़े का उपयोग करने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है - फोटो : Pixabay

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 15-24 साल की उम्र की करीब 50 फीसदी महिलाएं अभी भी पीरियड्स के दिनों में सेनेटरी नेपकिन की जगह कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। ऐसा वह जागरूकता की कमी के कारण करती हैं। रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने चिंता जताई कि अगर महिलाएं अशुद्ध कपड़े का पुन: उपयोग करती हैं, तो इससे कई स्थानीय संक्रमणों का खतरा बढ़ जाता है। हाल ही में जारी एनएफएचएस-5 में 15-24 उम्र की महिलाओं से पूछा गया कि वे मासिक धर्म के दौरान प्रोटेक्शन के लिए किसी तरीके का उपयोग करती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 64 प्रतिशत महिलाएं सेनेटरी नैपकिन, 50 प्रतिशत कपड़े और 15 प्रतिशत स्थानीय तौर से तैयार नैपकिन का उपयोग करती हैं। कुल मिलाकर, इस आयु वर्ग की 78 प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म से बचाव के लिए एक स्वच्छ विधि का उपयोग करती हैं। ध्यान दें कि स्थानीय रूप से तैयार किए गए नैपकिन, सेनेटरी नैपकिन, टैम्पोन और मेन्स्ट्रुअल कप पीरियड्स के लिए स्वच्छ तरीके माने जाते हैं।



पेस्विस में संक्रमण होने पर गर्भावस्था में जटिलताएं 

गुरुग्राम के सीके बिड़ला अस्पताल में प्रसूति और स्त्री रोग विभाग के डॉ आस्था दयाल के बताया, "कई अध्ययनों से पता चला है कि बैक्टीरियल वेजिनोसिस या मूत्र पथ के संक्रमण (यूटीआई) के कारण पेल्विस संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। चूंकि ये संक्रमण पेल्विस तक पहुंच सकता है, जिसके कारण प्रसव के दौरान गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था में जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। इसके अलावा, लंबे समय तक अस्वच्छता के कारण सर्वाइकल कैंसर का जोखिम भी बढ़ सकता है।'


शिक्षा के आधार पर मासिक धर्म में स्वच्छता पद्धति में अंतर

एनएफएचएस की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन महिलाओं की स्कूली शिक्षा 12 और अधिक तक हुई है, उनमें बिना स्कूली शिक्षा प्राप्त महिलाओं (90 प्रतिशत बनाम 44 प्रतिशत) की तुलना में स्वच्छता पद्धति का उपयोग करने की संभावना दोगुनी से अधिक है। डाॅ. दयाल ने बताया कि उच्चतम धन क्विंटल में महिलाओं की स्वच्छता पद्धति का उपयोग करने की संभावना सबसे कम धन क्विंटल (95 प्रतिशत बनाम 54 प्रतिशत) में महिलाओं की तुलना में लगभग दोगुना है। 90 प्रतिशत शहरी महिलाओं की तुलना में 73 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं पीरियड्स प्रोटेक्शन के लिए स्वच्छ विधि अपनाती हैं।

भौगोलिक आधार पर जिस राज्य की महिलाओं का प्रतिशत सबसे कम पीरियड्स प्रोटेक्शन के लिए स्वस्थ तरीका अपनाता है, वह बिहार, मध्य प्रदेश और मेघालय है। बिहार में 59 फीसदी, मध्य प्रदेश में 61 प्रतिशत और मेघालय में 65 प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म संरक्षण की एक स्वच्छ विधि का उपयोग करती हैं।

बिना स्कूली शिक्षा वाली 80 प्रतिशत महिलाएं सेनेटरी पैड का उपयोग करती हैं
बिना स्कूली शिक्षा वाली 80 प्रतिशत महिलाएं सेनेटरी पैड का उपयोग करती हैं - फोटो : Pixabay
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुतरेजा ने कहा कि एनएफएचएस-5 शिक्षा, धन और मासिक धर्म से बचाव के स्वच्छ तरीकों के बीच सीधा संबंध दर्शाता है। उन्होंने कहा कि बिना स्कूली शिक्षा वाली 80 प्रतिशत महिलाएं सेनेटरी पैड का उपयोग करती हैं, जबकि 12 पास या अधिक शिक्षा वाली केवल 35.2 प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी पैड का उपयोग करती हैं। उन्होंने कहा कि मासिक धर्म की सुरक्षा के लिए कपड़े का उपयोग शहरी क्षेत्रों की 31.5 प्रतिशत महिलाओं की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं में अधिक है, जिनका आंकड़ा 57.2 प्रतिशत है।

पीरियड्स के बारे में न बोल पाना इसकी वजह 

मुत्रेजा के मुताबिक, सबसे कम वेल्थ क्विंटल की महिलाओं में सबसे ज्यादा वेल्थ क्विंटल की महिलाओं की तुलना में कपड़े का उपयोग करने की संभावना लगभग 3.3 गुना अधिक है। इस प्रकार, सामाजिक पृष्ठभूमि अक्सर उचित मासिक धर्म स्वच्छता तक पहुंच निर्धारित करती है। पीरियड्स के बारे में बोलने पर प्रतिबंध या वर्जित होना महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन तक पहुंचने से हतोत्साहित करती है। उन्होंने कहा कि मासिक धर्म की स्वच्छता में सुधार के लिए लड़कियों की शिक्षा में निवेश की आवश्यकता है।

पीएमबीजेपी में 1 रुपये प्रति पैड

सामाजिक कार्यकर्ता और सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी ने कहा कि मासिक धर्म के दो पहलुओं को समझना महत्वपूर्ण है - एक मासिक धर्म से जुड़ी शर्म और दूसरा यह कि लड़कियां इसे किसी के साथ साझा नहीं करती हैं। प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत देश भर के केंद्रों में सैनिटरी नैपकिन कम से कम 1 रुपये प्रति पैड की कीमत पर उपलब्ध कराए जाते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नैपकिन के लिए आपको पैसो की जरूरत तो तब भी है। यानी अगर लड़कियों को 12 नैपकिन की जरूरत है तो उन्हें अपने माता पिता से 12 रुपये मांगने की जरूरत होगी। किस काम के लिए यह बताने में वह कतराएंगी।

पैड के लिए पैसे मांगने में कतराते हैं लोग

उन्होंने ये भी कहा कि हो सकता है कि माता-पिता सोचें कि यह एक बेकार खर्च है। इसलिए माता-पिता को भी लड़कियों के स्वास्थ्य के लिए परामर्श देने की आवश्यकता है। सरकार जो नैपकिन एक रुपये में उपलब्ध करा रही है, उसे संवेदीकरण के साथ हाथ से हाथ समुदायों में देने की जरूरत है। 2019-21 के बीच एनएफएचएस-5 देश के 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों में आयोजित किया गया, जिसमें लगभग 6.37 लाख घरों को सैंपल के लिए लिया गया। अलग-अलग अनुमान प्राप्त करने के लिए 7,24,115 महिलाओं और 1,01,839 पुरुषों को शामिल किया गया है। ध्यान दें कि राष्ट्रीय रिपोर्ट सामाजिक-आर्थिक और अन्य पृष्ठभूमि विशेषताओं द्वारा डेटा भी प्रदान करती है, जो नीति निर्माण और प्रभावी कार्यक्रम कार्यान्वयन के लिए उपयोगी है।
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नोट: यह लेख राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की रिपोर्ट से प्राप्त जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 
अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
 
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