जो भी है कर्ज़ है
सिर से पैर तक कर्ज़ में डूबे हैं हम
अपने अस्तित्व का कर्ज़ चुकाना है
स्वत्व देकर
ज़िंदगी के लिए जान देनी होगी।
यहां यही व्यवस्था है
दिल लौटाना होगा
और जिगर भी
हाथ-पैर की उंगलियां तक
वापिस चली जाएंगी
अब तुम चाहो तो भी यह करारनामा
फाड़कर फेंक नहीं सकते
चुकाने ही होंगे कर्ज़
चाहे अपनी खाल बेचकर चुकाओ
कर्ज़दारों की भीड़ में मैं इस ग्रह पर
भटकने के लि छोड़ दी गई हूं
कोई अपने परों के कर्ज़ से लदा है तो कोई परवाज़ के
कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें चाहे- अनचाहे
एक-एक फूल, एक-एक पत्ते का कर्ज़ चुकाना है
हमारा रेशा-रेशा उधार है
एक कण भी बचाया नहीं जा सकता
यह फेहरिस्त
--कभी न ख़त्म होने वाली फेहरिस्त बताती है
कि हमें खाली हाथ ही नहीं,
बिना हाथों के लौटना है
अब कुछ याद नहीं
कि मैंने कब, कहां, क्यों और किसे
अपने नाम पर यह उधार-खाता खोलने दिया
हम इसके खिलाफ आवाज़ उठाते हैं
शायद यह आवाज़ ही आत्मा है
हमारी एकमात्र चीज़
जो इस फेहरिस्त में शामिल नहीं है।
साभार: बीतती सदी में
रूपांतर: विजय अहलूवालिया
प्रकाशन: संवाद
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