कुछ लोग ख़यालों से चले जाएं तो सोएं
बीते हुए दिन-रात न याद आएं तो सोएं
चेहरे जो कभी हम को दिखाई नहीं देंगे
आ-आ के तसव्वुर में न तड़पाएं तो सोएं
बरसात की रुत के वो तरब-रेज़ मनाज़िर
सीने में न इक आग सी भड़काएं तो सोएं
सुब्हों के मुक़द्दर को जगाते हुए मुखड़े
आंचल जो निगाहों में न लहराएं तो सोएं