कुहरे की आकाश से , शाम हुई क्या बात।
सुबह-सुबह ही लूट ली, सूरज की बारात।।
ठिठुर-ठिठुर कर ठंड से, होती है बेहाल।
कौन लूट कर ले गया 'पश्मीना' की शाल ।।
पाँचों भाई-बहिन औ, पिल्ले-पिलिया चार।
सर्दी में लिपटे सहें ,कंगाली की मार।।
कुहरे, सरदी, धुंध के ,ऐसे-ऐसे दंड।
भिगो-भिगो कर हवा में , हाड़ तोड़ती ठंड।
आग सेंकने ज्यों गया, सूरज थानेदार।
कुहरे ने लूटा तभी, किरणों का बाज़ार।।
ठिठुर- ठिठुर कर ठंड से , रात पड़ी बेहाल।
भोर चिढ़ाने आ गई, ओढ़ सुनहली शाल।।
देख हाँकते चाँद को, तारों वाले ढोर।
सरदी में शैतान -सी ,मिली चिढ़ाती भोर।।
सारे मारे जाएँगे, झीलों के जलजात।
चला रही है बरछियाँ, शीत-लहर दिन-रात ।।
कुहरे की रस्सी कसी, सिर पर सरद कटार।
हवालात में बंद है, सूरज पहरेदार।
जीर्ण लँगोटी शीर्ण तन,कैसे सहता ठंड।
सुबह-सुबह ही मर गया ,निर्धन राम अखंड।।
-डाॅ.गंगाप्रसाद 'गुणशेखर'
आगे पढ़ें
4 months ago
कमेंट
कमेंट X