दूसरी मोहब्बत
पत्थर पर उगा पीपल है
या झुठलाया गया वो मुहावरा
कि हथेली पर सरसों नहीं जमती।
दूसरी बार प्यार
वो जश्न है
जिसे पहली किस के लिए मनाया गया
या कि वो मातम
जो सूखी झील में बहाया गया।
जैसे तारे कभी छिपते नहीं
पर लापता रहते हैं दिन भर
और सड़क कभी कहीं नहीं जाती
पर हमेशा चलती है
ठीक उसी तरह
दूसरी मोहब्बत हमेशा पहली होती है
क्योंकि उसे पहली बार दर्दमंद दिल मिलता है।
दूसरी मोहब्बत नामक बार में बैठ जाने के बाद
पहली बार के प्यार में पहली बार की फेहरिस्त
लाइन होटल के छोटू के रटे
मेन्यु जैसी लगती है।
पहली मोहब्बत राख है
जिसमें बची पड़ी चिंगारी से
दूसरी बार प्यार का चिराग जलता है
हर बार जवाब नहीं
कभी कभी सवाल भी खलता है
सवाल कि
जख्मों की वजह उदासी के फाहे हैं
या रोने से भीगी तकिये की रुई
सवाल कि
किसी हंसी की नोक कहां चुभी कहां बस छुई
सवाल कि
दूसरी मोहब्बत ही पहली क्यों ना हुई।
दूसरी मोहब्बत दरअसल उन सवालों के जवाब हैं
जिन्हें पहली मोहब्बत के पर्चे में
आखिरी मिनट तक हल नहीं किया जा सका
साभार: विवेक आसरी की फेसबुक वाल से
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1 year ago
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