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वायरल शायरी: जाने क्यूं अब चेहरे, खुली किताब नहीं होते

viral shayari on social media twenty seven august
                
                                                                                 
                            इंसान जाने कहां खो गये हैं!
                                                                                                


जाने क्यूं,
अब शर्म से,
चेहरे गुलाबी नहीं होते।
जाने क्यूं,
अब मस्त मौला मिज़ाज नहीं होते।

पहले बता दिया करते थे, 
दिल की बातें।
जाने क्यूं,
अब चेहरे,
खुली किताब नहीं होते।

सुना है,
बिन कहे,
दिल की बात,
समझ लेते थे।
गले लगते ही,
दोस्त हालात,
समझ लेते थे।

तब ना फेसबुक था,
ना स्मार्ट फ़ोन,
ना ट्विटर अकाउंट,
एक चिट्टी से ही,
दिलों के जज़्बात,
समझ लेते थे।

सोचता हूँ,
हम कहाँ से कहाँ आ गए,
व्यावहारिकता सोचते सोचते,
भावनाओं को खा गये।

अब भाई भाई से,
समस्या का समाधान,
कहां पूछता है,
अब बेटा बाप से,
उलझनों का निदान,
कहां पूछता है,
बेटी नहीं पूछती,
माँ से गृहस्थी के सलीके,
अब कौन गुरु के,
चरणों में बैठकर,
ज्ञान की परिभाषा सीखता है।

परियों की बातें, 
अब किसे भाती है,
अपनों की याद,
अब किसे रुलाती है,
अब कौन,
गरीब को सखा बताता है,
अब कहां,
कृष्ण सुदामा को गले लगाता है

ज़िन्दगी में,
हम केवल व्यावहारिक हो गये हैं,
मशीन बन गए हैं हम सब,
इंसान जाने कहां खो गये हैं!

(ये शायरी इंटरनेट की दुनिया में लोकप्रिय है। इनके रचनाकार का नाम पता नहीं चल सका। अगर आपको लेखक का नाम मालूम हो तो ज़रूर बताएं। शायरी के साथ शायर का नाम लिखने में हमें ख़ुशी होगी।)
10 months ago

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