एक सुहागन चली है बनने को मां
सोचती है बनूं पहले बेटे की मां
विधाता ने सुनी न उसकी व्यथा
जन्म देकर बनी वो एक बेटी की मां
धैर्य धारण किए उसने पाला उसे
एक अच्छे से सांचे में ढला उसे
एक क्षण सारे कष्टों को भूली थी वह
बेटी हंस करके बोली जब अम्मा उसे
एकदा उसने फिर से सब सपने संजोयी
अपनी बीती कहानी पर बहुत ही ओ रोई
बोली मेरी वो प्यारी सी बेटी सुनो
आशा है मुझको आएगा तेरा भ्राता
भैया की अपने बनेगी तुम बहना
मैं भी बनूंगी एक बेटे की माता
क्या क्या सोची थी और वही लेटी हुई
उठ कर देखी उनकी बेटी हुई
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