फिर से आज बीच चौराहे,
नारी की इज्जत नीलाम हुई।
वस्त्र खींचते रहे लोग,
यह घटना सरेआम हुई।
केश खींचते, उसे घसीटते,
लोग चले रहे थे लाखों, पर।
किसी ने तनिक न रोका किन्तु,
शर्म नहीं थी आंखों पर।
चुप्पी साधे रहे शिखंडी,
ये ही बाद में भौंकेंगे।
थे अनभिज्ञ ये घटना से,
ऐसा ये जता कर चौंकेंगे।
मुझे तो लगता है कानून में,
हो ऐसा सहज विधान यहां।
जो देख कर पाप ना रोके,
उसको भी हो कराधान यहां।
जिसने नग्न किया नारी को,
उनसे पापी हैं वो लोग बड़े।
रहे देखते, खूब तमाशा,
थे चौराहे पर जो खड़े।
यह तय है नामर्दों की चुप्पी,
दुष्टों की बनती खाद यहाँ।
इस चुप्पी से ऊर्जा पा ये,
पापी होते हैं आबाद यहां।
फिर कोसना व्यर्थ दुष्टों को,
अब शिखंडियों की पहचान करो।
थम जायेगा सब पाप यहाँ,
बस इनका सिर संधान करो।
~ अमिताभ प्रियदर्शी
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चुप्पी साधे रहे शिखंडी