रास्ता कभी ख़त्म नहीं होता
आग अपनी ही अग्नि में झुलसी
सूर्य अपने ही अंधकार में अस्त हुआ
आदमी अपनी छाया से कब मुक्त हो सका
इस संसार में जितना भी अंधेरा है
किसी अदृश्य की देह की छाया है।
प्यास के कंठ में है डूबकर मरी नदी का श्राप
रात में बिछड़े हुए लोगों की बेचैनी
चलने से ठहरने को अलग नहीं किया जा सकता
ठहरना एक खास तरह से चलना रहा है हमेशा से
पौधे एक खास मौसम में फूलते हैं
पेड़ एक खास ऋतु में फलते हैं
पेड़-पौधों में जो खास है वही फल और फूल बनता है
मौसम और ऋतु उनके सोकर जागने की बेला है।
विश्वासघात झेल चुके मन
परमाणु हमले झेल चुके शहर हैं
जब कभी साहस की कमी लगे
किसी टूटे हुए हृदय के सामने खड़े हो जाना
तुम्हारे स्वप्न के पंखों में रंग बढ़ेंगे
नींद गहरी और भाषा चौरस होगी
जब ऐसा लगे रास्ता नहीं है आगे
हाथ में धनुष मत उठाना
बस विश्वास करना रास्ता कभी ख़त्म नहीं होता
और निकल जाना एक दृश्य से दूसरे दृश्य में
जैसे एक स्वप्न से दूसरे स्वप्न में जाया जाता है
जैसे एक नींद से दूसरी नींद में प्रवेश किया जाता है
जैसे मृत्यु को असत्य कहते हुए
देह बदल लेती है आत्मा
साभार: अनुराग अनंत की फेसबुक वाल से
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9 months ago
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