दिल है कि तिरी याद से ख़ाली नहीं रहता
शायद ही कभी मैं ने तुझे याद किया हो
जितना देखो उसे थकती नहीं आँखें वर्ना
ख़त्म हो जाता है हर हुस्न कहानी की तरह
मेरे पास से उठ कर वो उस का जाना
सारी कैफ़िय्यत है गुज़रते मौसम सी
छेड़ कर जैसे गुज़र जाती है दोशीज़ा हवा
देर से ख़ामोश है गहरा समुंदर और मैं
अंदर अंदर खोखले हो जाते हैं घर
जब दीवारों में पानी भर जाता है
मैं लाख इसे ताज़ा रखूँ दिल के लहू से
लेकिन तिरी तस्वीर ख़याली ही रहेगी
ये कम है क्या कि मिरे पास बैठा रहता है
वो जब तलक मिरे दिल को दुखा नहीं जाता
बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है
मैं भी चुप था कि चलो सीने में ख़ंजर ही तो है
मुझ से बिछड़ कर होगा समुंदर भी बेचैन
रात ढले तो करता होगा शोर बहुत
टूटती रहती है कच्चे धागे सी नींद
आँखों को ठंडक ख़्वाबों को गिरानी दे
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1 month ago
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