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Shariq Kaifi Poetry: सियाने थे मगर इतने नहीं हम, ख़मोशी की ज़बाँ समझे नहीं हम

उर्दू अदब
                
                                                                                 
                            सियाने थे मगर इतने नहीं हम 
                                                                                                

ख़मोशी की ज़बाँ समझे नहीं हम 

अना की बात अब सुनना पड़ेगी 
वो क्या सोचेगा जो रूठे नहीं हम 

अधूरी लग रही है जीत उस को 
उसे हारे हुए लगते नहीं हम 

हमें तो रोक लो उठने से पहले 
पलट कर देखने वाले नहीं हम 

बिछड़ने का तिरे सदमा तो होगा 
मगर इस ख़ौफ़ को जीते नहीं हम 
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3 weeks ago

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