मुश्किलें थम गईं, दर्द कम हो गया
अब ज़माने का ग़म अपना ग़म हो गया
रास्ते ने मुसाफ़िर से क्या क्या कह दिया
इन्क़िलाबे सफ़र हर क़दम हो गया
जब कटे हाथ भी लेके परचम उड़े
तब सितमगर ने समझा सितम हो गया
जिस क़लम ने लिखा इन्क़िलाबन अलिफ़
वह क़लम सर न था, सर क़लम हो गया
रोशनी अब अँधेरे की हमराज़ है
जो न होता था वह एकदम हो गया
ज़हन से ज़ीस्त तक सुर्ख़रू था मगर
ख़्वाब आँखों में उतरा तो नम हो गया
वक़्त तो आसमाँ को झुका देता है
सर तो सर ही है थोड़ा सा ख़म हो गया
मेरे बाद आने वालों से कहना 'शलभ'
एक बेगाना दुनिया में कम हो गया
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3 महीने पहले
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