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शलभ श्रीराम सिंह: अब ज़माने का ग़म अपना ग़म हो गया

उर्दू अदब
                
                                                         
                            मुश्किलें थम गईं, दर्द कम हो गया 
                                                                 
                            
अब ज़माने का ग़म अपना ग़म हो गया 

रास्ते ने मुसाफ़िर से क्या क्या कह दिया 
इन्क़िलाबे सफ़र हर क़दम हो गया 

जब कटे हाथ भी लेके परचम उड़े 
तब सितमगर ने समझा सितम हो गया 

जिस क़लम ने लिखा इन्क़िलाबन अलिफ़ 
वह क़लम सर न था, सर क़लम हो गया 

रोशनी अब अँधेरे की हमराज़ है 
जो न होता था वह एकदम हो गया  आगे पढ़ें

3 महीने पहले

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