तन्हाई तुम, इतनी भी तन्हा नहीं होती हो
मैं होता हूँ तुम होती हो
सच तो ये है कि मैं होकर भी नहीं होता
तुम न होकर भी होती हो
दिल की नगरी से माज़ी के फ़सानों का कारवाँ सा गुज़रता है
हरेक मंज़र रुकता है हरेक पस-ए-मंज़र ठहरता है
ले जाता है मुझे वहाँ, मोहब्बत से पहली दफ़े मिला था जहाँ
शायद उसे भी याद हो वो शजर, वो क़याम
जहाँ लिक्खे थे हमने इक दूजे के नाम
उस शजर से यादों की इक पगडण्डी निकलती है
उसकी यादों की, मेरी यादों की, हमारी यादों की
कुछ यादें आँखों में बस जाती हैं
कुछ यादें आँखों से बह जाती हैं
तन्हाई तुम, इतनी भी तन्हा नहीं होती हो
मैं होता हूँ तुम होती हो
4 weeks ago
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