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Mir Taqi Mir Ghazal: मीर तक़ी मीर की ग़ज़ल 'बनी थी कुछ इक उस से मुद्दत के बाद'

mir taqi mir ghazal bani thi kuch ek us se muddat ke baad
                
                                                                                 
                            

बनी थी कुछ इक उस से मुद्दत के बाद


सो फिर बिगड़ी पहली ही सोहबत के बाद

जुदाई के हालात मैं क्या कहूँ
क़यामत थी एक एक साअत के बाद

मुआ कोहकन बे-सुतूँ खोद कर
ये राहत हुई ऐसी मेहनत के बाद

लगा आग पानी को दौड़े है तू
ये गर्मी तिरी इस शरारत के बाद

कहे को हमारे कब उन ने सुना
कोई बात मानी सो मिन्नत के बाद

सुख़न की न तकलीफ़ हम से करो
लहू टपके है अब शिकायत के बाद

नज़र 'मीर' ने कैसी हसरत से की
बहुत रोए हम उस की रुख़्सत के बाद

3 months ago

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