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कुँअर बेचैन की ग़ज़ल- प्यासे होंठों से

Kunwar Bechain
                
                                                                                 
                            प्यासे होंठों से जब कोई झील न बोली बाबू जी
                                                                                                

हमने अपने ही आँसू से आँख भिगो ली बाबू जी

भोर नहीं काला सपना था पलकों के दरवाज़े पर
हमने यों ही डर के मारे आँख न खोली बाबू जी
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1 month ago

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