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Urdu Ghazal: कृष्ण बिहारी नूर की ग़ज़ल 'बिछड़ के तुझ से न जीते हैं और न मरते हैं'

कृष्ण बिहारी 'नूर'
                
                                                         
                            

बिछड़ के तुझ से न जीते हैं और न मरते हैं
अजीब तरह के बस हादसे गुज़रते हैं

ज़मीन छोड़ न पाऊँगा इंतिज़ार ये है
वो आसमान से धरती पे कब उतरते हैं

ये किस ने खींच दी साँसों की लक्ष्मण-रेखा
कि जिस्म जलता है बाहर जो पाँव धरते हैं



ये चाँद तारे ज़मीं और आफ़्ताब तमाम
तवाफ़ करते हैं किस का तवाफ़ करते हैं?

हयात देती हैं साँसें बस इक मक़ाम तलक
फिर इस के बा'द तो बस साँस साँस मरते हैं

3 महीने पहले

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