हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है
रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है
तेरी बातों से आज तो वाइज़
वो जो थी ख़्वाहिश-ए-नजात गई
जीते जी और तर्क-ए-मोहब्बत
मर जाना आसान नहीं है
क्या ख़बर थी ख़लिश-ए-नाज़ न जीने देगी
ये तिरी प्यार की आवाज़ न जीने देगी
आँखों में नूर जिस्म में बन कर वो जाँ रहे
या'नी हमीं में रह के वो हम से निहाँ रहे
नियाज़ ओ नाज़ के झगड़े मिटाए जाते हैं
हम उन में और वो हम में समाए जाते हैं
बराबर से बच कर गुज़र जाने वाले
ये नाले नहीं बे-असर जाने वाले
पी रहा हूँ आँखों आँखों में शराब
अब न शीशा है न कोई जाम है
सब पे तू मेहरबान है प्यारे
कुछ हमारा भी ध्यान है प्यारे
इश्क़ पर कुछ न चला दीदा-ए-तर का क़ाबू
उस ने जो आग लगा दी वो बुझाई न गई
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4 months ago
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