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हर्षवर्धन 'औरंगाबादी': तीन चुनिंदा ग़ज़लें

उर्दू अदब
                
                                                                                 
                            जुदाई याद आती है सुकूँ दिन भर नहीं मिलता
                                                                                                

मैं जिसको चाहता हूँ वो मुझे अक्सर नहीं मिलता

जुदा जब मैं हुआ उनसे तो मुझको ये समझ आया
जो घर पर प्यार मिलता है किसी दर पर नहीं मिलता

ग़लत रस्ता दिखाने को बहुत से लोग मिलते हैं
सही गर रास्ता हो तो कोई रहबर नहीं मिलता

गुज़ारो ग़म के दिन हँसकर मगर ये जान लो यारों
सुकूँ जो रो के मिलता है कभी हँसकर नहीं मिलता

इरादे साफ़ रखकर जो ग़रीबों का भला कर दे
मुझे इस मुल्क में ऐसा कोई लीडर नहीं मिलता

मिला है गर तुझे ’वर्धन’ तो बेशक प्यार करती है
किसी को इतनी जल्दी फ़ोन का नम्बर नहीं मिलता आगे पढ़ें

पुकारें लाख हम जिनको वो तन्हा छोड़ देते हैं

1 week ago

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