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Urdu Shayari: फ़िराक़ गोरखपुरी की ग़ज़ल 'वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें'

firaq gorakhpuri ghazal wo chup chap ansoo bahaane ki ratein
                
                                                         
                            

वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें
वो इक शख़्स के याद आने की रातें

शब-ए-मह की वो ठंडी आँचें वो शबनम
तिरे हुस्न के रस्मसाने की रातें

जवानी की दोशीज़गी का तबस्सुम
गुल-ए-ज़ार के वो खिलाने की रातें

फुवारें सी नग़्मों की पड़ती हों जैसे
कुछ उस लब के सुनने-सुनाने की रातें

मुझे याद है तेरी हर सुब्ह-ए-रुख़्सत
मुझे याद हैं तेरे आने की रातें



पुर-असरार सी मेरी अर्ज़-ए-तमन्ना
वो कुछ ज़ेर-ए-लब मुस्कुराने की रातें

सर-ए-शाम से रतजगा के वो सामाँ
वो पिछले पहर नींद आने की रातें

सर-ए-शाम से ता-सहर क़ुर्ब-ए-जानाँ
न जाने वो थीं किस ज़माने की रातें

सर-ए-मय-कदा तिश्नगी की वो क़स्में
वो साक़ी से बातें बनाने की रातें

हम-आग़ोशियाँ शाहिद-ए-मेहरबाँ की
ज़माने के ग़म भूल जाने की रातें

'फ़िराक़' अपनी क़िस्मत में शायद नहीं थे
ठिकाने के दिन या ठिकाने की रातें

3 महीने पहले

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