फिर कोई नया ज़ख़्म नया दर्द अता हो उस दिल की ख़बर ले जो तुझे भूल चला हो अब दिल में सर-ए-शाम चराग़ाँ नहीं होता शो'ला तिरे ग़म का कहीं बुझने न लगा हो कब इश्क़ किया किस से किया झूट है यारो बस भूल भी जाओ जो कभी हम से सुना हो दरवाज़ा खुला है कि कोई लौट न जाए और उस के लिए जो कभी आया न गया हो शायद कि तिरे क़ुर्ब से आ जाए मयस्सर वो दर्द कि जो दर्द-ए-जुदाई से सिवा हो अब मेरी ग़ज़ल का भी तक़ाज़ा है ये तुझ से अंदाज़-ओ-अदा का कोई उस्लूब नया हो
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