आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

आसिम वास्ती: तुम भटक जाओ तो कुछ ज़ौक़-ए-सफ़र आ जाएगा

उर्दू अदब
                
                                                                                 
                            तुम भटक जाओ तो कुछ ज़ौक़-ए-सफ़र आ जाएगा 
                                                                                                

मुख़्तलिफ़ रस्तों पे चलने का हुनर आ जाएगा 

मैं ख़ला में देखता रहता हूँ इस उम्मीद पर 
एक दिन मुझ को अचानक तू नज़र आ जाएगा 

तेज़ इतना ही अगर चलना है तन्हा जाओ तुम 
बात पूरी भी न होगी और घर आ जाएगा 

ये मकाँ गिरता हुआ जब छोड़ जाएँगे मकीं 
इक परिंदा बैठने दीवार पर आ जाएगा  आगे पढ़ें

1 week ago

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही