आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

Urdu Ghazal: अनवर शादानी की ग़ज़ल 'दिल-ए-मुज़्तर को समझाया बहुत है, हुआ तन्हा तो घबराया बहुत है'

anwar shadani ghazal dil e muztar ko samjhaya bahut hai
                
                                                                                 
                            

दिल-ए-मुज़्तर को समझाया बहुत है


हुआ तन्हा तो घबराया बहुत है

मुबारक हो तुझे ये क़स्र-ए-रंगीं
मुझे दीवार का साया बहुत है

मिरे दिल का ये आलम भी अजब है
कि जिस पर आ गया आया बहुत है



तिरे इस फूल से चेहरे ने अब के
मिरे ज़ख़्मों को महकाया बहुत है

तिरे वादों में शायद कुछ कमी है
उफ़ुक़ पर चाँद गहनाया बहुत है

ये दौलत ले के 'अनवर' क्या करूँगा
तिरी यादों का सरमाया बहुत है  

2 months ago

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही