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Urdu Ghazal: अहमद नदीम क़ासमी की ग़ज़ल 'चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद'

ahmad nadeem qasmi ghazal chaand uss raat bhi nikla tha magar uss ka vajood
                
                                                                                 
                            

चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद


इतना ख़ूँ-रंग था जैसे किसी मा'सूम की लाश

तारे उस रात भी चमके थे मगर इस ढब से
जैसे कट जाए कोई जिस्म-ए-हसीं क़ाश-ब-क़ाश

इतनी बेचैन थी उस रात महक फूलों की
जैसे माँ जिस को हो खोए हुए बच्चे की तलाश

पेड़ चीख़ उठते थे अमवाज-ए-हवा की ज़द में
नोक-ए-शमशीर की मानिंद थी झोंकों की तलाश

1 month ago

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