आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे
अपने शाह-ए-वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे
तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आँकड़ें झूठे हैं ये दावा किताबी है
ख़ुद को ज़ख़्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो
गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे
पारलौकिक प्रेम का मधुमास लेकर क्या करें
ग़ैरत मरी तो वाक़ई इंसान मर गया
जीने की सिर्फ़ रस्म निभाए हुए हैं लोग
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2 weeks ago
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