'हिंदी हैं हम' शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- प्रतिध्वनि, जिसका अर्थ है- वह ध्वनि या शब्द जो अपनी उत्पत्ति के स्थान से चलकर कहीं टकराता हुआ लौटे और फिर वहीं सुनाई पड़े, गूँज। प्रस्तुत है महादेवी वर्मा की रचना- तुम दुख बन इस पथ से आना !
तुम दुख बन इस पथ से आना!
शूलों में नित मृदु पाटल-सा;
खिलने देना मेरा जीवन;
क्या हार बनेगा वह जिसने
सीखा न हृदय को बिंधवाना!
वह सौरभ हूँ मैं जो उड़कर
कलिका में लौट नहीं पाता,
पर कलिका के नाते ही प्रिय
जिसको जग ने सौरभ जाना!
नित जलता रहने दो तिल तिल,
अपनी ज्वाला में उर मेरा;
इसकी विभूति में फिर आकर
अपने पद-चिह्न बना जाना!
वर देते हो तो कर दो ना,
चिर आँखमिचौनी यह अपनी;
जीवन में खोज तुम्हारी है
मिटना ही तुमको छू पाना!
प्रिय! तेरे उर में जग जावे,
प्रतिध्वनि जब मेरे पी पी की;
उसको जग समझे बादल में
विद्युत का बन बन मिट जाना!
तुम चुपके से आ बस जाओ,
सुख-दुख सपनों में श्वासों में;
पर मन कह देगा ‘यह वे हैं’
आँखें कह देंगी ‘पहचाना’!
जड़ जग के अणुओं में स्मित से,
तुमने प्रिय जब डाला जीवन,
मेरी आँखों ने सींच उन्हें
सिखलाया हँसना खिल जाना!
कुहरा जैसे घन आतप में,
यह संसृति मुझमें लय होगी;
अपने रागों में लघु वीणा
मेरी मत आज जगा जाना!
तुम दुख बन इस पथ से आना !
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2 months ago
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